Tuesday, 13 May 2014

Changed geography and history became Ó Rambadha

गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर इसी जगह कभी आबाद बस्ती रामबाड़ा हुआ करती थी। आपदा के बाद इसका नामो-निशान नहीं बचा। जिसने रामबाड़ा देखा था उसे विश्वास नहीं हो रहा और जिसने नहीं देखा, वह मानने को तैयार ही नहीं कि जिन चट्टानों के बीच मंदाकिनी शांत रूप में बह रही है, वहां कभी खुशहाल बस्ती हुआ करती थी। देखने वाले तो बस यही कह रहे हैं कि कुदरत ने यहां का भूगोल क्या बदला, इतिहास बनकर रह गया रामबाड़ा।

पिछले साल 16-17 जून को आई आपदा ने पूरी मंदाकिनी घाटी को हिला कर रख दिया था। घर, बाजार, खेत-खलिहान सब तबाह हो गए। इन्हीं में रामबाड़ा नामक केदारनाथ पैदल मार्ग का वह महत्वपूर्ण पड़ाव भी था, जिसका आज कहीं नामो-निशान तक नहीं है। यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम का होटल, बाबा काली कमली वाले की धर्मशाला समेत दर्जनों होटल और धर्मशालाएं थीं। यहां ढाई सौ से अधिक दुकानें भी हुआ करती थी। यात्रा के दौरान यहां पांच हजार से अधिक यात्री रोजाना रात्रि विश्राम के लिए रुकते थे।

उस दिन मंदाकिनी ने ऐसा विकराल रूप धारण किया कि सबकुछ नेस्तनाबूद हो गया। रामबाड़ा इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गया।

यहां से गुजरने वाले स्थानीय लोग और रामबाड़ा को पहले देख चुके यात्री अब बस अंदाजा लगाकर ही बता पाते है कि इधर होटल था उधर दुकानें। यहां का भूगोल इस कदर बदल गया है कि ठीक से बता पाना भी मुश्किल है कि कहां क्या था। कभी बस्ती से 50 मीटर नीचे बहने वाली मंदाकिनी में अचानक ऐसा उफान आया कि वह सबकुछ बहा ले गई। कुछ ही पल में बड़े-बड़े भवन ताश के पत्तों की तरह ढह गए। और.पलक झपकते ही इतिहास बन गया 'रामबाड़ा'।

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