नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से जस्टिस [रिटायर्ड] एके गांगुली को हटाने का रास्ता साफ हो गया है। केंद्रीय कैबिनेट ने उनके खिलाफ प्रेसीडेंशियल रेफरेंस को मंजूरी दे दी है। जस्टिस गांगुली के खिलाफ महिला प्रशिक्षु वकील से यौन दुर्व्यवहार का मामला तो था ही, लेकिन आयोग का अध्यक्ष रहते सेवा शर्तों का उल्लंघन कर पाकिस्तान जाना, वहां की सरकार का आतिथ्य स्वीकार करना व निजी कंपनियों के बीच मध्यस्थता का मामला भी उन पर भारी पड़ा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने पत्रकारों को बताया कि जस्टिस गांगुली मामले में गृह मंत्रालय के प्रेसीडेंशियल रेफरेंस के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। सूत्रों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल राज्य मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन पद पर रहते हुए जस्टिस गांगुली के आचरण को लेकर उठाए गए सवालों पर कैबिनेट में भी एक राय रही। प्रशिक्षु वकील के साथ यौन दुर्व्यवहार के अलावा बाकी मामलों में लगे आरोपों को गंभीर मानते हुए कैबिनेट ने गांगुली के खिलाफ कार्रवाई को जरूरी माना है।
गौरतलब है कि जस्टिस गांगुली के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार का आरोप तो है ही, लेकिन उसके साथ ही आयोग के चेयरमैन पद पर रहते हुए सेवा आचरण के विरुद्ध जाने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी में उन मामलों को उठाकर उन्हें आयोग के चेयरमैन पद से हटाने की गुहार कर चुकी हैं। उन पर आरोप है कि आयोग के चेयरमैन पद पर रहते वह बीते साल तीन से छह जून तक के दौरे पर पाकिस्तान गए। वह भी एक निजी कंपनी से हवाई यात्रा की टिकटों को लेकर।
इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी इस निजी विदेश यात्रा के लिए न राज्यपाल की अनुमति ली और न ही छुट्टी मंजूर कराई। उनका यह कृत्य पश्चिम बंगाल राज्य मानवाधिकार आयोग के नियम-छह के विपरीत तो था ही। राज्य सरकार का तर्क यह भी है कि सरकारी सेवकों के मामले में इस तरह का आचरण भारतीय दंड संहिता की धारा-21 का भी उल्लंघन है। उन्होंने फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010 के प्रावधानों की अनदेखी की, जो निजी विदेश यात्रा के दौरान सरकारी आतिथ्य लेने की इजाजत नहीं देता।
प्रेसीडेंशियल रेफरेंस की प्रक्रिया
-किसी वैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति के खिलाफ मामले की जांच या उसे पद से हटाए जाने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने के लिए कैबिनेट संबंधित नोट तैयार कर राष्ट्रपति के पास औपचारिक रूप से भेजती है। इसे प्रेसीडेंशियल रेफरेंस कहा जाता है।
-इस नोट को राष्ट्रपति संविधान के अनच्च्छेद 143 (1) के तहत प्रधान न्यायाधीश के पास भेजकर मामले की जांच के लिए कहते हैं और उनकी राय लेते हैं।
-मानवाधिकार एक्ट के तहत राष्ट्रीय या राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। ऐसा तभी किया जा सकता है जब इस तरह का रेफरेंस राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पास भेजा जाए और कोर्ट जांच के बाद यह पाए कि कदाचरण या अक्षमता के आधार पर संबंधित व्यक्ति को हटाने का मामला बनता है।
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