नई दिल्ली [जाब्यू]। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा की भाजपा में वापसी का आधार और तर्क पूरी तरह तैयार हो गया है। केंद्रीय नेतृत्व में भी सहमति बन गई है। जनवरी के पहले पखवाड़े में कभी भी इसकी घोषणा हो सकती है।
दिल्ली में 'आप' के उदय और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर छिड़ी बहस के बीच येद्दयुरप्पा के मुद्दे पर लगा ब्रेक अब खत्म हो गया है। यह जरूर है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस फैसले में राज्य इकाई को ही आगे रखना चाहता है। लिहाजा इसकी पूरी संभावना है कि राजनीतिक रूप से पार्टी के लिए अहम इस मौके पर केंद्रीय नेतृत्व शायद वहां मौजूद न हो। हां, फैसले के बचाव का आधार तैयार है।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले बैठी भाजपा का तर्क है कि येद्दयुरप्पा किसी संवैधानिक पद तो दूर पार्टी में भी किसी अहम पद के दावेदार नहीं हैं। येद्दयुरप्पा सिर्फ पार्टी में शामिल हो रहे हैं। उनके खिलाफ जांच चल रही है। इतिहास का हवाला देते हुए यह भी याद दिलाने की कोशिश होगी कि भ्रष्टाचार का आरोप लगते ही पार्टी के नेता संवैधानिक पदों से इस्तीफा देते रहे हैं। खुद लालकृष्ण आडवाणी ने भी हवाला मामले में ऐसा ही किया था। वीरभद्र को भी मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की जा रही है। वह कांग्रेस में रहे या न रहें, इसपर भाजपा ने कोई सवाल नहीं उठाया है।
लिहाजा येद्दयुरप्पा के मसले पर किसी को कुछ बोलने का नैतिक हक नहीं है। इसी तर्क पर लालकृष्ण आडवाणी को भी समझाने का प्रयास हुआ। ध्यान रहे कि आडवाणी के दबाव पर ही उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। बाद में येद्दयुरप्पा ने खुद ही पार्टी छोड़ दी थी। अब वह इसी शर्त पर वापसी कर रहे हैं कि उन्हें कोई पद नहीं मिलेगा। लिहाजा औपचारिक घोषणा का रास्ता साफ हो गया है।
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