लखनऊ [आनंद राय]। बसपा सरकार में कद्दावर मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के खिलाफ स्मारक घोटाले में भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज कराना सपा सरकार का सबसे बड़ा सियासी दांव है। सांप्रदायिक दंगों और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर चौतरफा घिरी सरकार ने इस कार्रवाई से एक तीर से कई निशाना साधने की जुगत लगाई है। लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी सपा एक तरफ भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई को अपना हथियार बनाएगी और दूसरी तरफ कुशवाहा को संरक्षण देने के चुभते सवालों पर विपक्ष का मुंह बंद करने की भी कोशिश करेगी।
विधानसभा चुनाव के दरम्यान अखिलेश यादव जब साइकिल यात्रा लेकर निकले तो स्मारक घोटाले का भ्रष्टाचार उनका सबसे अहम मुद्दा था। वह अपनी किसी सभा में यह कहने से नहीं चूकते कि यदि हमारी सरकार बनी तो स्मारक घोटाला करने वालों को जेल भेजेंगे। 21 माह बाद अखिलेश के उन वादों को एक मुकाम मिला है। हालांकि इसके पहले लैकफेड घोटाले में बसपा सरकार के ही मंत्री बादशाह सिंह, चंद्रदेव राम यादव और रंगनाथ मिश्र को जेल जाना पड़ा। इन्हीं आरोपों में कुशवाहा के खिलाफ भी वारंट बी बना। चार पूर्व मंत्रियों को जेल भेजे जाने के बावजूद सपा सरकार उसका श्रेय नहीं ले पाई। दरअसल एक ही तरह के आरोपों में कुछ पूर्व मंत्रियों को जेल भेजा और कुछ को छोड़ दिया। इससे जांच एजेंसी की नीयत पर तो सवाल उठे ही, दोहरा मापदंड भी उजागर हुआ। अब सतर्कता विभाग के सहारे सरकार ने एक नई पहल की है।
कुशवाहा पर नई रणनीति
बाबू सिंह कुशवाहा के खिलाफ जिस दिन आय से अधिक संपत्ति, भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी में मुकदमा दर्ज होना था, उसके पहले उनकी पत्नी और भाई सपा में शामिल हो गए। अब उनकी पत्नी गाजीपुर से सपा की उम्मीदवार है। ऐसे में स्मारक घोटाले में कुशवाहा पर एफआइआर को सरकार की नई रणनीति माना जा रहा है।
शिकंजे में माया के नवरत्न
पहले भी आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार के मामले में माया सरकार के नवरत्न घिरे हैं। रामवीर उपाध्याय को छोड़ दें, तो राकेश धर त्रिपाठी, रंगनाथ मिश्र, अवधपाल सिंह यादव, बादशाह सिंह, नसीमुद्दीन, बाबू सिंह कुशवाहा, रामवीर उपाध्याय, चंद्रदेव राम यादव और रामअचल राजभर जैसे कद्दावर मंत्रियों पर जांच और मुकदमे की प्रक्रिया शुरू हुई। रामवीर उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से स्थगनादेश ले रखा है।
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