नई दिल्ली। मरणोपरांत पद्म पुरस्कार देने के संबंध में सरकारी नियमों ने भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता केडी जाधव को इस नागरिक सम्मान के अयोग्य बना दिया है। इससे नाराज जाधव के बेटे रंजीत अपने पिता द्वारा 1952 हेलंसिकी ओलंपिक में जीते गए कांस्य पदक को फेंक देना चाहते हैं।
देश के ओलंपिक पदकधारियों में से एकमात्र वही हैं, जिन्हें पद्म पुरस्कार से नहीं नवाजा गया है। 1996 खेलों के बाद से भारत के लिए व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले सभी खिलाड़ियों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है और केवल जाधव ही इससे वंचित हैं। उनका निधन 1984 में हुआ था। गृह मंत्रालय का नियम कहता है, यह पुरस्कार सामान्यत: मरणोपरांत नहीं दिया जाता। हालांकि अत्याधिक उपयुक्त मामले में सरकार मरणोपरांत पुरस्कार देने पर विचार सकती है, वह भी तब जब सम्मान दिए जाने के लिए प्रस्तावित व्यक्ति का निधन हाल ही में हुआ हो। जैसे गणतंत्र दिवस को पुरस्कार देने की घोषणा होती है, तो इससे एक साल के अंदर ही संबंधित व्यक्ति का निधन हुआ हो।
इस नियम के अनुसार जाधव के लिए सम्मान प्राप्त करना मुश्किल होगा लेकिन उनके बेटे रंजीत चाहते हैं कि नियम को बदलकर उनके पिता को पद्म भूषण से सम्मानित किया जाए, जैसे हाल में बदलाव किए गए हैं जिसमें खिलाड़ियों को भारत रत्न देने की अनुमति मिल गई है। रंजीत ने कहा, 'मेरे पिता ने 1952 हेलसिंकी खेलों में कांस्य पदक जीतकर देश को गौरवांवित किया था। अब उन्हें भुला दिया गया है। मुझे लगता है कि अब इस ओलंपिक पदक को अरब सागर में फेंकना ही सही होगा। अगर सरकार भारत रत्न खिलाड़ियों को देने का फैसला कर सकती है तो वह पद्म पुरस्कार के मामले में ऐसा क्यों नहीं कर सकती।'
उन्होंने कहा कि मेरे पिता के बाद भारत को व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने में 44 साल लग (1996 अटलांटा में पेस द्वारा जीते गए पदक) गए। मेरे पिता के बाद किसी भी पहलवान को ओलंपिक पदक (सुशील कुमार के 2008 बीजिंग में कांस्य) जीतने में 56 साल लग गए। रंजीत ने कहा कि मैं बाकी लोगों को पद्म पुरस्कार मिलने के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन क्या यह मेरे पिता का अनादर नहीं है कि उन्होंने पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक दिलाया और उन्हें ही पद्म पुरस्कार से नहीं नवाजा गया जबकि जिन्होंने पदक बाद में जीता उन्हें पुरस्कार से नवाजा गया।
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