वसंत का अहसास कराता मौसम। रविवार को सूरज चढ़ा तो बरसाने की चमक ही निराली थी। बरसाना की होली में गुलाल बरसने लगा। आसमां ने गुलाबी आभा ले ली। होरी के रसियाओं का रस बरसना शुरू हुआ तो, तो छठा बदलने लगी। फाग खेलन बरसाने आयो है, नटवर नंद किशोर.घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही है छटा छबीली की टेर के बीच छबीली गली में हुरियारिनों की प्रेम पगी लाठियां नंदगांव के हुरियारों पर बरसने लगीं।
इसमें सुबह नंदगांव के हुरियारों के, तो शाम बरसाना की हुरियारिनों के नाम रही। ब्रज की इस लठामार होली के साक्षी बने देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालु इस होरी को देखकर भाव-विभोर हो गए। रविवार सुबह जयपुरी फेंटा और हाथों में ढाल, पिचकारी लेकर हुरियारों के टोल नंदबाबा मंदिर पहुंचे। वहां से टोलियां बरसाने निकल पड़ीं। बुजुर्ग हुरियारे भी फाग की मस्ती में मस्त थे। मस्ती में पता ही नहीं चला कि नंदगांव से बरसाना की आठ किमी दूरी कब खत्म हो गई। शाम को श्री राधा के धाम में सूर्य देव छिपने की तैयारी में थे। लेकिन रंग-बिरंगे वेश में सजे नंदगांव के ग्वालों (हुरियारों) के चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी। एक ओर ये हुरियारे, दूसरी तरफ लहंगा-ओढ़नी से सजी श्री राधारानी की सखी गोपियां। ग्वालों के हाथ में ढाल, तो हुरियारिनों (गोपियों) के हाथों में लंबी सजीली लाठियां। हुरियारों को छेड़ते देख लंबी घूंघट काढ़े गोपियां कभी सकुचातीं, कभी मुस्कातीं, कभी नैनन के बाण चलातीं। गोपियां लाठी की तरफ इशारा करतीं, तो हुरियारे ढाल दिखाते। एक हुरियारे ने शरारती अंदाज में हुरियारिनों को होली खेलने का इशारा किया। तुरंत आवाज आई ़आ लाला तो कूं खिलाऊं मैं होली।़
इसके साथ ही गोपियों ने ग्वालों पर प्रेम से सराबोर लाठियों की बरसात शुरू कर दी। इससे कान्हा के सखा घुटनों के बल बैठने को विवश हो गए। सिर पर ढाल रखे हुरियारों पर लाठियां पड़ रही थीं। होली की खुमारी में मस्त हुरियारे बड़े आनंद से लाठियां खा रहे थे। कुछ बचने की कोशिश करते, तो हुरियारिनें उन्हें घेर लेतीं। कुछ हुरियारे ़.मत मारे दृगन की चोट, रसिया होरी में, मेरे लग जाएगी।़ गाकर मनुहार भी करते। बरसाना के हुरियारे सोमवार को नंदगांव में बदले की होली खेलने जाएंगे।
इसमें सुबह नंदगांव के हुरियारों के, तो शाम बरसाना की हुरियारिनों के नाम रही। ब्रज की इस लठामार होली के साक्षी बने देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालु इस होरी को देखकर भाव-विभोर हो गए। रविवार सुबह जयपुरी फेंटा और हाथों में ढाल, पिचकारी लेकर हुरियारों के टोल नंदबाबा मंदिर पहुंचे। वहां से टोलियां बरसाने निकल पड़ीं। बुजुर्ग हुरियारे भी फाग की मस्ती में मस्त थे। मस्ती में पता ही नहीं चला कि नंदगांव से बरसाना की आठ किमी दूरी कब खत्म हो गई। शाम को श्री राधा के धाम में सूर्य देव छिपने की तैयारी में थे। लेकिन रंग-बिरंगे वेश में सजे नंदगांव के ग्वालों (हुरियारों) के चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी। एक ओर ये हुरियारे, दूसरी तरफ लहंगा-ओढ़नी से सजी श्री राधारानी की सखी गोपियां। ग्वालों के हाथ में ढाल, तो हुरियारिनों (गोपियों) के हाथों में लंबी सजीली लाठियां। हुरियारों को छेड़ते देख लंबी घूंघट काढ़े गोपियां कभी सकुचातीं, कभी मुस्कातीं, कभी नैनन के बाण चलातीं। गोपियां लाठी की तरफ इशारा करतीं, तो हुरियारे ढाल दिखाते। एक हुरियारे ने शरारती अंदाज में हुरियारिनों को होली खेलने का इशारा किया। तुरंत आवाज आई ़आ लाला तो कूं खिलाऊं मैं होली।़
इसके साथ ही गोपियों ने ग्वालों पर प्रेम से सराबोर लाठियों की बरसात शुरू कर दी। इससे कान्हा के सखा घुटनों के बल बैठने को विवश हो गए। सिर पर ढाल रखे हुरियारों पर लाठियां पड़ रही थीं। होली की खुमारी में मस्त हुरियारे बड़े आनंद से लाठियां खा रहे थे। कुछ बचने की कोशिश करते, तो हुरियारिनें उन्हें घेर लेतीं। कुछ हुरियारे ़.मत मारे दृगन की चोट, रसिया होरी में, मेरे लग जाएगी।़ गाकर मनुहार भी करते। बरसाना के हुरियारे सोमवार को नंदगांव में बदले की होली खेलने जाएंगे।
Source: Spiritual News in Hindi & Hindi Panchang
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