नई दिल्ली। दिल्ली में सरकार बनाकर नया इतिहास रचने वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार को बृहस्पतिवार को दिल्ली विधानसभा में विश्वास मत हासिल करना है। कांग्रेस ने एक बार फिर दोहराया है कि वह 'आप' सरकार के समर्थन में वोट देगी। अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि सरकार सदन में अपना बहुमत साबित कर देगी। इस बीच, भाजपा के वरिष्ठ नेता जगदीश मुखी ने स्पीकर पद के लिए नामांकन दाखिल किया है। भाजपा अपने सभी 31 विधायकों विश्वास मत के खिलाफ वोट करने के लिए व्हिप जारी करेगी।
आज दोपहर दो बजे 'आप' के विधायक मनीष सिसोदिया सदन में विश्वास प्रस्ताव रखेंगे और इस पर चर्चा के बाद वोटिंग कराई जाएगी। चर्चा में 'आप' के आठ विधायक भाग लेंगे।
उधर, केजरीवाल द्वारा यह कहे जाने पर कि उनके पास वक्त कम बचा है, के अलग सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। उन्हें कहीं न कहीं विधानसभा में सरकार की हार का खतरा भी है। आखिर केजरीवाल को इस बात का डर क्यों है, आइए जानते हैं सदन के आंकड़ों के लिहाज से इसका जवाब :-
सदन के आंकड़े
अगर सदन के गणित की बात करें तो अकाली दल के साथ भाजपा के 32 विधायक हैं। इधर आप के 28 विधायक हैं और कांग्रेस के 8 विधायक सरकार को समर्थन कर रहे हैं। जनता दल यूनाइटेड के शोएब इकबाल ने भी आप को समर्थन दिया है। इस प्रकार सदन में सरकार के पक्ष में 37 विधायक हैं, जबकि बहुमत के लिए 36 विधायकों का समर्थन चाहिए।
कांग्रेस के एक विधायक मतीन अहमद को प्रोटेम स्पीकर बना दिया गया है। इसके बावजूद सरकार के पक्ष में 36 मत पड़ने चाहिए। यदि ऐसा ही होता है तो सरकार को कोई खतरा नहीं है। लेकिन कांग्रेस के जयकिशन और आप के दिनेश मोहनिया बुधवार को शपथ लेने सदन में नहीं पहुंचे। जाहिर तौर पर यदि वे बृहस्पतिवार को भी सदन में नहीं पहुंचे तो सत्ता पक्ष की संख्या घटकर 34 रह जाएगी। अगर, कांग्रेस के कुछ असंतुष्ट विधायक भी आप के खिलाफ चले जाते हैं तो सरकार को खतरा है, लेकिन देखने वाली बात यह है कि कांग्रेसी विधायक आलाकमान की ही बात मानेंगे।
उधर, यदि निर्दलीय विधायक रामवीर शौकीन भाजपा के पाले में वोट करते हैं तो विपक्ष के वोट 33 तक पहुंच जाएंगे। ऐसे में यदि सत्ता पक्ष के दो और विधायक सदन की बैठक से अनुपस्थित हो जाते हैं तो सरकार सदन में हार सकती है।
कांग्रेस के दिल्ली प्रभारी डॉ. शकील अहमद ने बुधवार को यह बयान दिया कि कांग्रेस तो आप की सरकार को समर्थन देने को तैयार है, लेकिन सत्ताधारी दल को अपने विधायकों की चिंता करनी चाहिए। वर्तमान सियासी माहौल में उनके इस बयान के गंभीर राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। दूसरी ओर मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार कम वक्त होने की बात कहने से भी अनिश्चितता का माहौल बन रहा है।
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