क्रांरांतिकारी जैन संत तरुण सागर महाराज ने मंगलवार को अपने कड़वे प्रवचनों से श्रोताओं के जीवन की मिठास घोलने का प्रयास किया। हंसी की फुहारों के बीच उन्होंने जीवन में आने वाले दुखों की चर्चा की और समय आते अपने जीवन में सुधार करने का संदेश दिया।
एमडी जैन इंटर कॉलेज, हरीपर्वत के मैदान में जैन मुनि के तीन दिवसीय कड़वे प्रवचनों की श्रृंखला मंगलवार से शुरू हुई। मंच पर बने ताजमहल के कटआउट के आगे आसन पर बैठकर उन्होंने अपने प्रवचन की शुरुआत में जिदंगी में प्रकृति, विकृति और संस्कृति का विशेष महत्व बताया। उन्होंने कहा कि भूख लगने पर भोजन करने को प्रकृति, भूख न लगे तब भी खाने को विकृति, खुद भूखे रहकर भूखे को खिलाना संस्कृति होती है।
एमडी जैन इंटर कॉलेज, हरीपर्वत के मैदान में जैन मुनि के तीन दिवसीय कड़वे प्रवचनों की श्रृंखला मंगलवार से शुरू हुई। मंच पर बने ताजमहल के कटआउट के आगे आसन पर बैठकर उन्होंने अपने प्रवचन की शुरुआत में जिदंगी में प्रकृति, विकृति और संस्कृति का विशेष महत्व बताया। उन्होंने कहा कि भूख लगने पर भोजन करने को प्रकृति, भूख न लगे तब भी खाने को विकृति, खुद भूखे रहकर भूखे को खिलाना संस्कृति होती है।
जिदंगी का सार बताते हुए संत ने कहा कि सोते में धन, जागते में धन, घर में धन, बाजार में धन। आखिर में रिजल्ट निकलता है निधन। इसलिए हमें ऐसे कर्म करने चाहिए, जिससे किसी और को हमारी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना नहीं करनी पड़े। हम ही आत्म कल्याण करें। जीवन में जो भी रिश्ते हैं, वे जीते जी हैं। मरने के बाद कोई रिश्ता किसी के साथ नहीं रहता।
Source: Spiritual News in Hindi & Hindi Panchang
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