हरियाणा में आगामी चुनाव से ठीक पहले राजग सरकार ने भी जाटों को आरक्षण देने के संप्रग सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी है। सुप्रीमकोर्ट में सरकार ने कहा कि जाटों को आरक्षण देने का फैसला राजनीति से प्रेरित नहीं बल्कि सद्भावना और जनहित में लिया गया निर्णय है। मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई होनी है।
मालूम हो कि कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग सरकार ने आम चुनाव से ठीक पहले चार मार्च को अधिसूचना जारी कर नौ राज्यों में जाटों को अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की केंद्रीय सूची में शामिल किया था। ये नौ राज्य बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान (भरतपुर और धौलपुर जिला), उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व दिल्ली हैं। जाहिर है कि इस फैसले का राजनीतिक पहलू देखा जा रहा था। सुप्रीमकोर्ट में इसे चुनौती भी दी गई थी। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने आंकड़े जुटाए बगैर जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने से इन्कार कर दिया था, लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार ने आयोग की सिफारिश दरकिनार करते हुए जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने की अधिसूचना जारी कर दी थी।
इसका राजनीतिक लाभ तो कांग्रेस को नही मिला, लेकिन उत्तर प्रदेश में जाटों का अच्छा खासा समर्थन पाने वाली भाजपा जरूर इस समर्थन को स्थायी बनाना चाहती है। अगले कुछ महीनों में जाट बहुल हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
लिहाजा राजग सरकार का कहना है कि कैबिनेट ने उस समय राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल न करने की सिफारिश इसलिए खारिज की थी क्योंकि आयोग ने जमीनी हकीकत पर ठीक से विचार नहीं किया था। कैबिनेट ने यह फैसला इंडियन काउंसिल फॉर सोशल साइंस एंड रिर्सच (आइसीएसएसआर) की रिपोर्ट के आधार पर किया था। इतना ही नहीं इस तथ्य पर भी ध्यान दिया था कि इन नौ राज्यों में अपनी राज्य सूची में जाटों को ओबीसी में शामिल कर रखा है। कैबिनेट की बैठक में जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने के कारण भी बताए गए थे। केंद्र सरकार ने इन सबके दस्तावेज भी हलफनामे के साथ कोर्ट में दाखिल किए हैं।
मालूम हो कि कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग सरकार ने आम चुनाव से ठीक पहले चार मार्च को अधिसूचना जारी कर नौ राज्यों में जाटों को अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की केंद्रीय सूची में शामिल किया था। ये नौ राज्य बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान (भरतपुर और धौलपुर जिला), उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व दिल्ली हैं। जाहिर है कि इस फैसले का राजनीतिक पहलू देखा जा रहा था। सुप्रीमकोर्ट में इसे चुनौती भी दी गई थी। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने आंकड़े जुटाए बगैर जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने से इन्कार कर दिया था, लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार ने आयोग की सिफारिश दरकिनार करते हुए जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने की अधिसूचना जारी कर दी थी।
इसका राजनीतिक लाभ तो कांग्रेस को नही मिला, लेकिन उत्तर प्रदेश में जाटों का अच्छा खासा समर्थन पाने वाली भाजपा जरूर इस समर्थन को स्थायी बनाना चाहती है। अगले कुछ महीनों में जाट बहुल हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
लिहाजा राजग सरकार का कहना है कि कैबिनेट ने उस समय राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल न करने की सिफारिश इसलिए खारिज की थी क्योंकि आयोग ने जमीनी हकीकत पर ठीक से विचार नहीं किया था। कैबिनेट ने यह फैसला इंडियन काउंसिल फॉर सोशल साइंस एंड रिर्सच (आइसीएसएसआर) की रिपोर्ट के आधार पर किया था। इतना ही नहीं इस तथ्य पर भी ध्यान दिया था कि इन नौ राज्यों में अपनी राज्य सूची में जाटों को ओबीसी में शामिल कर रखा है। कैबिनेट की बैठक में जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने के कारण भी बताए गए थे। केंद्र सरकार ने इन सबके दस्तावेज भी हलफनामे के साथ कोर्ट में दाखिल किए हैं।
Source: Newspaper
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