पुरानी चीजें वैसे तो पुरानी होती हैं, पर वक्त के साथ वही चीजें कई बार नयेपन का एहसास कराती हैं। अंग्रेजी में कहावत भी है ओल्ड इज गोल्ड। हम किसी भी सदी में क्यों न हों, पुराने का रुतबा हमेशा नए से ज्यादा होता है। पुराने कपड़े, पुरानी कारें, पुराने गहने हमें बहुत प्यारे होते हैं।
कारों का व्यापार आज जितना बड़ा है, कल उतना नहीं था। आज तो मध्यम वर्ग भी कारें खरीद सकता है, पर पहले ऐसा नहीं था। पहले कारें सिर्फ उच्च घरानों तक ही सीमित थीं। कारें तो कारें, मोटरसाइकलें तक केवल उच्च वर्ग की पहुंच के अंदर थीं। कारें रखना धनाढ्य होने की निशानी थी। भारत में तो कार या मोटरसाइकल की कंपनियां थीं ही नहीं। सन् 1903 में भारत में पहली कार लाने का श्रेय एक अंग्रेज अफसर को जाता है। हालांकि बहुत सी पुरानी कार ब्रांड आज भी अपनी गरिमा बनाए हुए हैं। रॉल्स रॉयस आज भी धनाढ्य वर्ग की पहली पसंद है। इसकी कारें फिल्मों के लिए भी जाती हैं। शेवरोले भी 15 साल पहले भारतीय कार बाजार में पुन प्रवेश कर सफलता भी पा चुका है। यह आज भी भारतीय कार बाजार का एक जाना-पहचाना नाम है।
मोटरसाइकल बाजार में भी ऐसा ही कुछ है। इसे भी पहली बार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सन् 1947 में ब्रिटिश आर्मी ही भारत लेकर आई थी। उस वक्त के मोटरसाइकल ब्रांड में बीएसए, इंडियन, रॉयल एनफील्ड और ट्राइअम्फ कुछ प्रमुख नाम थे। आज भारत विश्व में मोटरसाइकल का सबसे बड़ा बाजार है। हालांकि ये सारे ब्रांड अब मौजूद नहीं हैं पर कुछ ब्रांड अभी भी हैं। जैसे रॉयल एनफील्ड आज भारतीय कंपनी ईचर मोटर्स का हिस्सा है। ब्रिटिश मोटरसाइकल ब्रांड ट्राइअम्फ भी भारतीय बाजार में आने की तैयारी कर रहा है।
Original Found Here.. http://www.jagran.com/news/oddnews-pre-independence-cars-4065.html
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