यूपीएससी परीक्षा के सीसैट विवाद में गैर-अंग्रेजी भाषी छात्रों को तात्कालिक राहत देने के बाद मोदी सरकार समस्या के स्थायी समाधान की कोशिश में जुट गई है। इसके लिए जल्द ही विशेषज्ञों की नई समिति का गठन किया जाएगा, जो अगले साल होने वाली परीक्षा के लिए सीसैट में किए जाने वाले बदलावों के बारे में सुझाव देगी। बहुत संभव है अगले साल नए प्रारूप के साथ यूपीएससी की परीक्षा हो। लेकिन इससे आंदोलन कर रहे छात्र नाखुश हैं और आशंका जताई जा रही है कि प्रदर्शनकारी आज फिर सड़क से संसद तक इस मुद्दे पर हंगामा कर सकते हैं।
गृहमंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अंग्रेजी भाषा के सवालों के अंकों को नहीं जोड़कर सिर्फ 377.5 अंकों पर योग्यता सूची तैयार करना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि अगले साल पूरे 400 अंकों की परीक्षा होगी, लेकिन उसमें अंग्रेजी भाषा के बजाय शायद दूसरे प्रकार के सवाल होंगे। उन्होंने कहा कि यूपीएससी में योग्य छात्रों के चयन सुनिश्चित करने के लिए प्रश्नपत्र का स्वरूप तय करना एक जटिल काम है। यह विशेषज्ञों की टीम ही कर सकती है।
दरअसल सीसैट प्रणाली लागू होने के बाद से ही छात्र इसमें हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के छात्रों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते रहे थे। पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस पर मुहर लगाते हुए सरकार को शिकायतों पर विचार करने का आदेश दिया था। लेकिन मार्च में गठित वर्मा कमेटी सीसैट के समर्थन में खड़ी हो गई। नए फार्मूले में मोदी सरकार ने वर्मा कमेटी की सिफारिश को खारिज करने का साफ संकेत दे दिया है। इस बीच यूपीएससी के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि प्रारंभिक परीक्षा को टालने का सवाल ही नहीं पैदा होता है। यह परीक्षा अपने पूर्व निर्धारित तिथि 24 अगस्त को ही होगी।
सीसैट समाप्त करने से कम पर राजी नहीं हैं छात्र
सीसैट प्रणाली को खत्म करने की मांग को लेकर लगातार दो माह से प्रदर्शन करने वाले छात्रों का कहना है कि उन्होंने जो मांगा था वह नहीं मिला। छात्र ऐसा महसूस कर रहे हैं- जैसे जंजीर बदली और उन्हें लगा कि रिहाई हो गई। छात्रों का कहना है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो उन्हें फिर से सड़कों पर उतरना पड़ेगा।
गौरतलब है कि सोमवार को संसद में कार्मिक मामलों के मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि अंग्रेजी के अंकों के आधार पर मेरिट नहीं होगी। ज्यादातर छात्रों का कहना है कि हमने सीसैट प्रणाली को खत्म करने की मांग की थी, जिसकी अनदेखी की गई। मुखर्जी नगर में रह रहे सुमित ने कहा कि सीसैट प्रणाली के विरोध का एक हिस्सा यह था कि अंग्रेजी को वरीयता न दी जाए। इसका लाभ कुछ विशेष छात्रों को मिलता है।
इसमें इंजीनियरिंग व आइआइटी के छात्र शामिल हैं। क्षेत्रीय भाषाओं के छात्रों को इससे कठिनाई होती है। सरकार ने इस बात पर चर्चा करना जरूरी भी नहीं समझा। इस मसले को लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता राममाधव और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव जेपी नड्डा से मुलाकात भी की गई थी। उन्होंने सीसैट को क्वालीफाइंग करने को लेकर बात की थी।
प्रदर्शन, मुलाकात और बातचीत का कोई निष्कर्ष नहीं निकला। हमने उन्हें समय दिया और कमेटी बनाने की बात भी मानी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। विवेक का कहना है कि प्रारंभिक परीक्षा की तिथि में बदलाव नहीं किया गया है। ऐसे में महीनों से प्रदर्शन में जुटे छात्र उत्तीर्ण कैसे होंगे। केवल वर्ष-2011 में पहली बार सीसैट के तहत परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों को वर्ष-2015 में मौका देने की बात है, जबकि ऐसे छात्रों की संख्या कम है।
यह भी भ्रम फैला है कि यह सिर्फ हिंदी भाषा के छात्रों की मांग है, जो गलत है। यह आंदोलन दक्षिण भारत में भी जोरशोर से जारी है। मुखर्जी नगर में धारा-144 लगाने पर छात्र सुदिल और ओमश्री ने कहा कि हम यह मानते हैं कि छात्रों का प्रदर्शन शांतिपूर्ण होना चाहिए, लेकिन सरकार का यह फैसला छलावा है।
गृहमंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अंग्रेजी भाषा के सवालों के अंकों को नहीं जोड़कर सिर्फ 377.5 अंकों पर योग्यता सूची तैयार करना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि अगले साल पूरे 400 अंकों की परीक्षा होगी, लेकिन उसमें अंग्रेजी भाषा के बजाय शायद दूसरे प्रकार के सवाल होंगे। उन्होंने कहा कि यूपीएससी में योग्य छात्रों के चयन सुनिश्चित करने के लिए प्रश्नपत्र का स्वरूप तय करना एक जटिल काम है। यह विशेषज्ञों की टीम ही कर सकती है।
दरअसल सीसैट प्रणाली लागू होने के बाद से ही छात्र इसमें हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के छात्रों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते रहे थे। पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस पर मुहर लगाते हुए सरकार को शिकायतों पर विचार करने का आदेश दिया था। लेकिन मार्च में गठित वर्मा कमेटी सीसैट के समर्थन में खड़ी हो गई। नए फार्मूले में मोदी सरकार ने वर्मा कमेटी की सिफारिश को खारिज करने का साफ संकेत दे दिया है। इस बीच यूपीएससी के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि प्रारंभिक परीक्षा को टालने का सवाल ही नहीं पैदा होता है। यह परीक्षा अपने पूर्व निर्धारित तिथि 24 अगस्त को ही होगी।
सीसैट समाप्त करने से कम पर राजी नहीं हैं छात्र
सीसैट प्रणाली को खत्म करने की मांग को लेकर लगातार दो माह से प्रदर्शन करने वाले छात्रों का कहना है कि उन्होंने जो मांगा था वह नहीं मिला। छात्र ऐसा महसूस कर रहे हैं- जैसे जंजीर बदली और उन्हें लगा कि रिहाई हो गई। छात्रों का कहना है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो उन्हें फिर से सड़कों पर उतरना पड़ेगा।
गौरतलब है कि सोमवार को संसद में कार्मिक मामलों के मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि अंग्रेजी के अंकों के आधार पर मेरिट नहीं होगी। ज्यादातर छात्रों का कहना है कि हमने सीसैट प्रणाली को खत्म करने की मांग की थी, जिसकी अनदेखी की गई। मुखर्जी नगर में रह रहे सुमित ने कहा कि सीसैट प्रणाली के विरोध का एक हिस्सा यह था कि अंग्रेजी को वरीयता न दी जाए। इसका लाभ कुछ विशेष छात्रों को मिलता है।
इसमें इंजीनियरिंग व आइआइटी के छात्र शामिल हैं। क्षेत्रीय भाषाओं के छात्रों को इससे कठिनाई होती है। सरकार ने इस बात पर चर्चा करना जरूरी भी नहीं समझा। इस मसले को लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता राममाधव और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव जेपी नड्डा से मुलाकात भी की गई थी। उन्होंने सीसैट को क्वालीफाइंग करने को लेकर बात की थी।
प्रदर्शन, मुलाकात और बातचीत का कोई निष्कर्ष नहीं निकला। हमने उन्हें समय दिया और कमेटी बनाने की बात भी मानी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। विवेक का कहना है कि प्रारंभिक परीक्षा की तिथि में बदलाव नहीं किया गया है। ऐसे में महीनों से प्रदर्शन में जुटे छात्र उत्तीर्ण कैसे होंगे। केवल वर्ष-2011 में पहली बार सीसैट के तहत परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों को वर्ष-2015 में मौका देने की बात है, जबकि ऐसे छात्रों की संख्या कम है।
यह भी भ्रम फैला है कि यह सिर्फ हिंदी भाषा के छात्रों की मांग है, जो गलत है। यह आंदोलन दक्षिण भारत में भी जोरशोर से जारी है। मुखर्जी नगर में धारा-144 लगाने पर छात्र सुदिल और ओमश्री ने कहा कि हम यह मानते हैं कि छात्रों का प्रदर्शन शांतिपूर्ण होना चाहिए, लेकिन सरकार का यह फैसला छलावा है।
Source: Newspaper
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