लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में करीब छह सौ घटनाएं सामने आई हैं जिसमें सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश की गई। इसमें से करीब साठ फीसद मामले ऐसी विधानसभा क्षेत्रों के सामने आए हैं जहां पर अगले कुछ माह में उपचुनाव होने हैं।
गौरतलब है कि आने वाले समय में बारह विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है। इसकी वजह यह है कि लोकसभा चुनाव में इन सीटों के प्रतिनिधि जीतकर संसद पहुंच चुके हैं। लिहाजा छह माह के अंदर इन सीटों पर चुनाव कराए जाने हैं। एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से करीब दो तिहाई मामले ऐसे हैं जहां पर बवाल की वजह धर्म को बनाया गया। फिर चाहे वह मौजूदा सहारनपुर दंगा रहा हो या फिर अन्य कोई और। इन जगहों पर धर्म के नाम पर मुद्दा बनाकर सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश की गई।
जिन जगहों पर इस तरह के बवाल हुए हैं वहां पर एक ओर जहां भाजपा काफी उग्र रूप में दिखाई दी वहीं सपा का रवैया बेहद नकारात्मक दिखाई दिया। बसपा ने ऐसी जगहों पर अपनी वापसी को लेकर कोशिश करती हुई दिखाई दी।
आंकड़े बताते हैं कि इस तरह के मामलों में कहीं मस्जिद बनाने, दीवार ढहाने, कब्रिस्तान, मदरसा और लाउड स्पीकर जैसे विवादों के बाद उठे और बाद में उग्र हो गए। लोकसभा चुनाव के बाद अकेले पश्चिमी यूपी में इस तरह के 259 मामले सामने आए। वहीं बुंदेलखंड में छह, पूर्वी यूपी 16, अवध में 53 और तराई क्षेत्र में 29 मामले सामने आए हैं।
इस तरह के बवाल भड़काने में जिन विवादों ने काम किया उसमें छेड़छाड़ से लेकर आपसी मारपीट तक के मामले शामिल हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश के करीब 70, गाय वध करने के करीब 61, ऐसे छेड़छाड़ के मामले जिसमें दूसरे समुदाय के लोग शामिल थे के मामले 50, दुर्घटना के मामले 30 हैं, जिनपर विवाद बढ़ा और आपसी तनाव में इजाफा हुआ।
हाल ही में हुए सहारनपुर दंगे में भी उठा कब्रिस्तान-गुरुद्वारा विवाद इसका एक जीता-जागता उदाहरण है। इसके अलावा एक जुलाई को मस्जिद में लाउड स्पीकर को बंद करवाने की घटना को तूल दिया गया जिसके बाद दंगा हुआ। तीन अगस्त को ही मेरठ में युवती को अगवा कर धर्म परिवर्तन कराने के नाम पर एक बार फिर से आपसी सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश की गई थी।
गौरतलब है कि आने वाले समय में बारह विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है। इसकी वजह यह है कि लोकसभा चुनाव में इन सीटों के प्रतिनिधि जीतकर संसद पहुंच चुके हैं। लिहाजा छह माह के अंदर इन सीटों पर चुनाव कराए जाने हैं। एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से करीब दो तिहाई मामले ऐसे हैं जहां पर बवाल की वजह धर्म को बनाया गया। फिर चाहे वह मौजूदा सहारनपुर दंगा रहा हो या फिर अन्य कोई और। इन जगहों पर धर्म के नाम पर मुद्दा बनाकर सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश की गई।
जिन जगहों पर इस तरह के बवाल हुए हैं वहां पर एक ओर जहां भाजपा काफी उग्र रूप में दिखाई दी वहीं सपा का रवैया बेहद नकारात्मक दिखाई दिया। बसपा ने ऐसी जगहों पर अपनी वापसी को लेकर कोशिश करती हुई दिखाई दी।
आंकड़े बताते हैं कि इस तरह के मामलों में कहीं मस्जिद बनाने, दीवार ढहाने, कब्रिस्तान, मदरसा और लाउड स्पीकर जैसे विवादों के बाद उठे और बाद में उग्र हो गए। लोकसभा चुनाव के बाद अकेले पश्चिमी यूपी में इस तरह के 259 मामले सामने आए। वहीं बुंदेलखंड में छह, पूर्वी यूपी 16, अवध में 53 और तराई क्षेत्र में 29 मामले सामने आए हैं।
इस तरह के बवाल भड़काने में जिन विवादों ने काम किया उसमें छेड़छाड़ से लेकर आपसी मारपीट तक के मामले शामिल हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश के करीब 70, गाय वध करने के करीब 61, ऐसे छेड़छाड़ के मामले जिसमें दूसरे समुदाय के लोग शामिल थे के मामले 50, दुर्घटना के मामले 30 हैं, जिनपर विवाद बढ़ा और आपसी तनाव में इजाफा हुआ।
हाल ही में हुए सहारनपुर दंगे में भी उठा कब्रिस्तान-गुरुद्वारा विवाद इसका एक जीता-जागता उदाहरण है। इसके अलावा एक जुलाई को मस्जिद में लाउड स्पीकर को बंद करवाने की घटना को तूल दिया गया जिसके बाद दंगा हुआ। तीन अगस्त को ही मेरठ में युवती को अगवा कर धर्म परिवर्तन कराने के नाम पर एक बार फिर से आपसी सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश की गई थी।
Source: Newspapers
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