नई दिल्ली [नीलू रंजन]। पिछले दस साल से कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन के नाम से बदनाम सीबीआइ के तेवर बदलने लगे हैं। भाजपा महासचिव व नरेंद्र मोदी के नायब कहे जाने वाले अमित शाह के खिलाफ नरम रवैया अपनाने वाली सीबीआइ ने दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ नजर टेढ़ी कर ली है। शीला सरकार के दौरान दिल्ली जल बोर्ड में हुए घोटाले के आरोपों में सीबीआइ अब तक पांच प्रारंभिक जांच [पीई] के मामले दर्ज कर चुकी है। वहीं, इस्पात मंत्री रहते हुए रिश्वत लेने के आरोपों में घिरे वीरभद्र सिंह को कभी भी पूछताछ के लिए तलब किया जा सकता है।
दिल्ली जल बोर्ड में घोटाले को लेकर दर्ज पांच पीई में तीन नांगलोई, मालवीय नगर और महरौली-वसंत विहार में जलशोधन संयंत्र लगाने, एक एएमआर मीटरों की खरीद और एक भागीरथी जलशोधन संयंत्र लगाने में हुई धांधली से संबंधित है। ये सभी मामले दो-तीन साल पुराने हैं, लेकिन पीई के केस पिछले दो महीने में दर्ज किए गए हैं।
सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आरोपों के प्रथम दृष्टया सही पाए जाने की स्थिति में ही पीई का केस दर्ज किया गया है, लेकिन घोटाले के आरोपियों की पहचान जांच के बाद ही हो पाएगी। गौरतलब है कि दिल्ली जल बोर्ड शीला दीक्षित के ही मातहत काम करता था। वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, दो कारणों से इन मामलों की जांच आगे नहीं बढ़ पा रही थी। एक तो दिल्ली जल बोर्ड संबंधित फाइलें देने में आनाकानी कर रहा था और दूसरे खुद सीबीआइ के सभी अधिकारी साल के अंतिम महीने में टारगेट पूरा करने में व्यस्त थे। उन्होंने उम्मीद जताई कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद दिल्ली जल बोर्ड से इन ठेकों की फाइलें मिलने में देर नहीं लगेगी।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद लंबे समय से बिजली और पानी वितरण में बड़े घोटाले के आरोप लगाते रहे हैं। उन्होंने यह विभाग भी अपने पास रखा है। जाहिर है नए साल में सीबीआइ प्रारंभिक जांच पूरी कर एफआइआर दर्ज कर सकती है।
वहीं, पिछले 15 महीने से वीरभद्र सिंह के खिलाफ पीई केस पर कुंडली मारे बैठी सीबीआइ अचानक हरकत में आ गई है। सीधे आरोपों में घिरे होने के बावजूद सीबीआइ ने अभी तक वीरभद्र सिंह से पूछताछ की जरूरत नहीं समझी थी। अब सीबीआइ इससे इन्कार नहीं कर रही है।
सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा ने कहा कि वह वीरभद्र सिंह से पूछताछ के मुद्दे पर जल्द फैसला लेंगे। सूत्रों की माने तो इस मामले में भी जल्द ही एफआइआर हो सकती है। वीरभद्र सिंह पर केंद्र में इस्पात मंत्री रहते हुए करोड़ों रुपये रिश्वत लेने का आरोप है। इनमें दो साल में छह करोड़ रुपये की एलआइसी पॉलिसी खरीदने के सबूत भी मिल गए हैं। वैसे वीरभद्र सिंह अचानक बढ़ी कृषि आय से इन पॉलिसियों की खरीद की सफाई दे रहे हैं, लेकिन सीबीआइ के जांच अधिकारी इससे संतुष्ट नहीं हैं और एफआइआर दर्ज कर गहन जांच की मांग कर रहे हैं। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने भी सीबीआइ से वीरभद्र सिंह के मामले में अब तक की कार्रवाई की रिपेार्ट 15 जनवरी तक देने को कहा है।
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