दिल्ली में भाजपा अल्पमत की सरकार बना सकती है। हालांकि, इस पर पार्टी ने कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन इसे लेकर मंथन जारी है। दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय का भी कहना है कि अल्पमत की सरकार बनाना कोई पाप नहीं है। इससे लगता है कि पर्दे के पीछे सरकार बनाने की संभावनाओं पर पार्टी में गंभीरता से विचार किया जा रहा है।
भाजपा दिल्ली की राजनीतिक अनिश्चितता को दूर करने के लिए सरकार बनाने की संभावना तलाशने में जुटी हुई है। इसमें एक संभावना अल्पमत से सरकार बनाने की भी है। इसके लिए भाजपा के कुछ विधायक चुनाव नहीं चाहने वाले विपक्षी दलों के विधायकों से संपर्क कर उन्हें अपने फॉर्मूले पर राजी करने की कोशिश में लगे हुए हैं। बताते हैं कि अब कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के विधायकों को तोड़कर सरकार बनाने के बजाए अल्पमत की सरकार बनाने को तरजीह दी जा रही है। इससे पहले भी केंद्र सहित कई राज्यों में अल्पमत की सरकार बन चुकी है। इसे भाजपा असंवैधानिक भी नहीं मानती है। इसलिए इस विकल्प पर गंभीरता से मंथन चल रहा है।
देशभर में जाएगा गलत संदेश
दरअसल, भाजपा नेतृत्व दिल्ली में सरकार बनाने के लिए किसी अन्य पार्टी में तोड़फोड़ करने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि इससे देशभर में गलत संदेश जाएगा। विरोधियों को भी हमला करने का एक मुद्दा मिल जाएगा। वहीं, पार्टी के नेता अपने विधायकों की राय को भी खारिज नहीं करना चाहते हैं।
तीन बार चुनाव थोपना ठीक नहीं
भाजपा के विधायक अभी चुनाव के पक्ष में नहीं हैं। उनका मानना है कि दिल्लीवासियों पर एक साल के अंदर तीन बार चुनाव थोपना उचित नहीं है। इससे दिल्ली में विकास कार्य बुरी तरह से प्रभावित होंगे। उनके अनुसार अन्य पार्टियों के विधायक भी चुनाव नहीं चाहते हैं। इसलिए उनकी सहायता से सरकार बनाने की संभावना तलाशने की जरूरत है। कुछ विधायकों ने कांग्रेस के छह विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने की मुहिम भी शुरू की थी, लेकिन वह सिरे नहीं चढ़ सकी।
क्या है विश्वास मत का फॉर्मूला
वर्तमान में दिल्ली विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 67 है। इसमें भाजपा के सबसे अधिक 29 विधायक हैं। जबकि आप के 27, कांग्रेस के 8, आप का एक बागी विधायक, एक जद (यू) तथा एक निर्दलीय। यदि आप या कांग्रेस के 5 विधायक विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित हो जाएं तो विधानसभा में अध्यक्ष के अतिरिक्त विधायकों की संख्या 61 रह जाएगी। इस स्थिति में विश्वास मत हासिल करने के लिए 31 विधायकों का समर्थन चाहिए जो कि भाजपा आप के बागी विधायक तथा एक निर्दलीय विधायक की बदौलत हासिल कर लेगी। एक बार विश्वास मत हासिल होने के बाद छह माह तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
अब क्या करेंगे उपराज्यपाल नजीब जंग
दिल्ली में सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा? उम्मीद और संकेत तो यही हैं कि देर-सबेर, सूबे में भाजपा की अगुवाई में सरकार बन जाएगी। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में जिस प्रकार आम आदमी पाटी (आप) ने विधानसभा भंग कर चुनाव कराने का दबाव उपराज्यपाल नजीब जंग पर डालना शुरू किया है, उसे देखते हुए जंग पर समय रहते फैसला लेने का दबाव जरूर बढ़ गया है।
सूबे के सियासी गलियारों में चर्चा यह भी हो रही है कि पहले विधानसभा को भंग करने की मांग को लेकर अदालत तक जाने वाले केजरीवाल जब मई के अंत में उपराज्यपाल से मिलने गए थे, तब वह यह आग्रह करना नहीं भूले कि फिलहाल विधानसभा भंग नहीं की जाए क्योंकि सरकार बनने की संभावनाएं बची हुई हैं। हालांकि बाद में उन्होंने अपना रुख बदल लिया और अब वे लगातार विधानसभा को भंग कर चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं।
केजरीवाल जब पिछली बार अपने तमाम विधायकों के साथ उपराज्यपाल से मिलने गए थे तो वहां से लौटने के बाद उन्होंने कहा था कि अब जंग भाजपा और कांग्रेस को विचार-विमर्श के लिए बुलाएंगे। यदि भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया तो वह उससे बहुमत के आंकड़े के बारे में जरूर पूछताछ करेंगे। राजनिवास की ओर से भी कहा गया कि उपराज्यपाल बाकी संबंधित पक्षों से बातचीत करने के बाद राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजेंगे। लेकिन अच्छा-खासा समय बीतने के बावजूद जंग ने ऐसी कोई पहल नहीं की है।
जंतर-मंतर पर रविवार को हुई आम आदमी पार्टी की रैली में जिस प्रकार खुद केजरीवाल व उनकी पार्टी के नेताओं ने उपराज्यपाल पर हमला बोला, उसके मद्देनजर कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी जंग पर दबाव बनाने का पूरा प्रयास कर रही है। यह अलग बात है कि उनके आरोपों को लेकर राजनिवास कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। बहरहाल, अब यह देखना है कि उपराज्यपाल राजनीतिक विचार-विमर्श के लिए भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को कब आमंत्रित करते हैं।
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अल्पमत की सरकार बनाने में कोई बुराई नहीं है। राजनीति में कुछ भी हो सकता है। पहले भी देश में अल्पमत की सरकारें बन चुकी हैं। इसलिए यहां अल्पमत की सरकार क्यों नहीं बन सकती है। यदि दिल्ली को चुनाव से बचाने के लिए इस तरह की संभावना तलाशी जाती है तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
- सतीश उपाध्याय, दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष
भाजपा दिल्ली की राजनीतिक अनिश्चितता को दूर करने के लिए सरकार बनाने की संभावना तलाशने में जुटी हुई है। इसमें एक संभावना अल्पमत से सरकार बनाने की भी है। इसके लिए भाजपा के कुछ विधायक चुनाव नहीं चाहने वाले विपक्षी दलों के विधायकों से संपर्क कर उन्हें अपने फॉर्मूले पर राजी करने की कोशिश में लगे हुए हैं। बताते हैं कि अब कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के विधायकों को तोड़कर सरकार बनाने के बजाए अल्पमत की सरकार बनाने को तरजीह दी जा रही है। इससे पहले भी केंद्र सहित कई राज्यों में अल्पमत की सरकार बन चुकी है। इसे भाजपा असंवैधानिक भी नहीं मानती है। इसलिए इस विकल्प पर गंभीरता से मंथन चल रहा है।
देशभर में जाएगा गलत संदेश
दरअसल, भाजपा नेतृत्व दिल्ली में सरकार बनाने के लिए किसी अन्य पार्टी में तोड़फोड़ करने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि इससे देशभर में गलत संदेश जाएगा। विरोधियों को भी हमला करने का एक मुद्दा मिल जाएगा। वहीं, पार्टी के नेता अपने विधायकों की राय को भी खारिज नहीं करना चाहते हैं।
तीन बार चुनाव थोपना ठीक नहीं
भाजपा के विधायक अभी चुनाव के पक्ष में नहीं हैं। उनका मानना है कि दिल्लीवासियों पर एक साल के अंदर तीन बार चुनाव थोपना उचित नहीं है। इससे दिल्ली में विकास कार्य बुरी तरह से प्रभावित होंगे। उनके अनुसार अन्य पार्टियों के विधायक भी चुनाव नहीं चाहते हैं। इसलिए उनकी सहायता से सरकार बनाने की संभावना तलाशने की जरूरत है। कुछ विधायकों ने कांग्रेस के छह विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने की मुहिम भी शुरू की थी, लेकिन वह सिरे नहीं चढ़ सकी।
क्या है विश्वास मत का फॉर्मूला
वर्तमान में दिल्ली विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 67 है। इसमें भाजपा के सबसे अधिक 29 विधायक हैं। जबकि आप के 27, कांग्रेस के 8, आप का एक बागी विधायक, एक जद (यू) तथा एक निर्दलीय। यदि आप या कांग्रेस के 5 विधायक विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित हो जाएं तो विधानसभा में अध्यक्ष के अतिरिक्त विधायकों की संख्या 61 रह जाएगी। इस स्थिति में विश्वास मत हासिल करने के लिए 31 विधायकों का समर्थन चाहिए जो कि भाजपा आप के बागी विधायक तथा एक निर्दलीय विधायक की बदौलत हासिल कर लेगी। एक बार विश्वास मत हासिल होने के बाद छह माह तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
अब क्या करेंगे उपराज्यपाल नजीब जंग
दिल्ली में सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा? उम्मीद और संकेत तो यही हैं कि देर-सबेर, सूबे में भाजपा की अगुवाई में सरकार बन जाएगी। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में जिस प्रकार आम आदमी पाटी (आप) ने विधानसभा भंग कर चुनाव कराने का दबाव उपराज्यपाल नजीब जंग पर डालना शुरू किया है, उसे देखते हुए जंग पर समय रहते फैसला लेने का दबाव जरूर बढ़ गया है।
सूबे के सियासी गलियारों में चर्चा यह भी हो रही है कि पहले विधानसभा को भंग करने की मांग को लेकर अदालत तक जाने वाले केजरीवाल जब मई के अंत में उपराज्यपाल से मिलने गए थे, तब वह यह आग्रह करना नहीं भूले कि फिलहाल विधानसभा भंग नहीं की जाए क्योंकि सरकार बनने की संभावनाएं बची हुई हैं। हालांकि बाद में उन्होंने अपना रुख बदल लिया और अब वे लगातार विधानसभा को भंग कर चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं।
केजरीवाल जब पिछली बार अपने तमाम विधायकों के साथ उपराज्यपाल से मिलने गए थे तो वहां से लौटने के बाद उन्होंने कहा था कि अब जंग भाजपा और कांग्रेस को विचार-विमर्श के लिए बुलाएंगे। यदि भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया तो वह उससे बहुमत के आंकड़े के बारे में जरूर पूछताछ करेंगे। राजनिवास की ओर से भी कहा गया कि उपराज्यपाल बाकी संबंधित पक्षों से बातचीत करने के बाद राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजेंगे। लेकिन अच्छा-खासा समय बीतने के बावजूद जंग ने ऐसी कोई पहल नहीं की है।
जंतर-मंतर पर रविवार को हुई आम आदमी पार्टी की रैली में जिस प्रकार खुद केजरीवाल व उनकी पार्टी के नेताओं ने उपराज्यपाल पर हमला बोला, उसके मद्देनजर कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी जंग पर दबाव बनाने का पूरा प्रयास कर रही है। यह अलग बात है कि उनके आरोपों को लेकर राजनिवास कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। बहरहाल, अब यह देखना है कि उपराज्यपाल राजनीतिक विचार-विमर्श के लिए भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को कब आमंत्रित करते हैं।
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अल्पमत की सरकार बनाने में कोई बुराई नहीं है। राजनीति में कुछ भी हो सकता है। पहले भी देश में अल्पमत की सरकारें बन चुकी हैं। इसलिए यहां अल्पमत की सरकार क्यों नहीं बन सकती है। यदि दिल्ली को चुनाव से बचाने के लिए इस तरह की संभावना तलाशी जाती है तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
- सतीश उपाध्याय, दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष
Source: Newspaper
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