रांची, आशीष झा। सिठिओ गांव जाना है? रांची रेलवे स्टेशन पर आपके इस सवाल का जवाब शायद ही मिले। अगर मिल भी जाए तो एक सप्ताह पहले तक कोई खास जानकारी नहीं थी इस गांव के बारे में। धुर्वा पहुंचने के पहले तो शायद ही कोई बता पाता था।
पुलिस मुख्यालय से चंद मिनटों की दूरी और धुर्वा गोलचक्कर से महज 5 किमी दूर यह गांव अबतक गुमनामी में ही रहा है। गांव की सड़कों, नालियों और गलियों का हाल देखकर कोई भी कह सकता है कि राजनीतिक रूप से इसकी उपेक्षा होती रही है। कभी-कभी कुछ लोग आपस में विवाद कर पहुंच गए तो ठीक, नहीं तो पुलिस के लिए भी कुछ करने को नहीं था। अब माहौल बदल गया है। गांव सुर्खियों में है। पूरे देश की मीडिया के लोग पहुंच रहे हैं। सुबह से रात तक पुलिसवाले चक्कर लगाते रहते हैं।
गांववाले अचंभित हैं और सशंकित भी। पटना में हुए श्रृंखलाबद्ध धमाकों में गांव के युवकों का नाम आने से अचंभित राजनीतिक रूप से सक्रिय लोग अब किसी तरह से माहौल को सामान्य करने की कोशिशों में दिख रहे हैं। अन्य ग्रामीण इसे बेहतर अवसर के रूप में भी देख रहे हैं। सड़कों, नालियों की दशा बताते हैं। एचइसी से विस्थापितों के यह गांव पिछले कुछ दशकों में सरकारी काम के नाम पर एक सड़क (लगभग दो सौ फीट पक्की ढलाई) और एक नाली ही दिखती है। पूर्व सांसद रामटहल चौधरी ने सड़क बनवाई थी तो विधायक सावना लकड़ा ने नाली का निर्माण कराया था। जो कुछ है, ग्रामीणों की अपनी मेहनत का परिणाम है।
झाविमो नेता मो. इमरान और स्थानीय ग्रामीण सखावत हुसैन बताते हैं कि कैसे ग्रामीणों ने रिंग रोड निर्माण से जुड़ी कंपनी जेकेसी से गिट्टी और डस्ट मांगकर खुद ही मेहनत कर सड़क का निर्माण किया था। तब आने-जाने तक की स्थिति नहीं थी। 15 सौ से अधिक घरों और पांच हजार से अधिक वोटरों वाले इस गांव में मतदाताओं के साथ अबतक हुए छल पर लंबी बहस चलती है।
कुछ देर बाद गांव में मस्जिद के समीप चौराहे पर जमे दर्जनों लोग बस्ती के शांत माहौल का हवाला देते हैं। कहते हैं, कभी सोचा ही नहीं कि यह सब भी होगा। बातों-बातों में लोग कानून और पुलिस के साथ खड़े होते हैं, लेकिन माहौल में कुछ आशंकाएं हैं। कहीं अच्छे लोग न परेशान हो जाएं। जो भी हो, सिठिओ आज अपनी नई 'ख्याति' के साथ उन समस्याओं का हल भी ढूंढ रहा है जिसकी चिंता वर्षो तक किसी ने नहीं की।
Source- News in Hindi
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