नई दिल्ली [राजकिशोर]। चेहरे के अभाव और प्रशासनिक अक्षमता से आंध्र प्रदेश को लगभग गंवा चुकी कांग्रेस अब तेलंगाना के तीर से दोहरा लक्ष्य साधने की मुश्किल कोशिश कर रही है। लगातार दो बार केंद्र में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले आंध्र प्रदेश के विभाजन से यूं तो सियासी भूचाल आ गया है, लेकिन कांग्रेस के प्रबंधकों को लगता है कि भविष्य सकारात्मक होगा। उनकी रणनीति इस आशा पर टिकी है कि तेलंगाना में तो कांग्रेस खुद ही क्लीन स्वीप करेगी और सीमांध्र में वाईएसआर कांग्रेस अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी ताकतवर होकर उभरेंगे।
जगन का डीएनए कांग्रेस का बताकर पार्टी पहले ही चुनाव बाद वाइएसआर कांग्रेस के विलय या किसी समझौते के संकेत दे चुकी है। हालांकि, पार्टी के भीतर ही लोग इस खेल को बेहद खतरनाक भी मान रहे हैं। उन्हें डर है कि यह तीर कांग्रेस के लिए कहीं दोधारी तलवार साबित न हो जाए और पार्टी दोनों राज्यों को हमेशा के लिए न गंवा दे।
वैसे हर तरह के सियासी नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद ही कांग्रेस नेतृत्व ने तेलंगाना बनाने का फैसला किया। 42 लोकसभा सीट वाले आंध्र प्रदेश से पिछली बार कांग्रेस को अकेले 33 सीटें मिली थीं। इस दफा जो हालात थे, उनमें दोहरे अंक तक पहुंचना मुश्किल था। तेलंगाना नहीं बनने पर वहां भाजपा का तेलंगाना राष्ट्रवादी समिति से समझौता होने की प्रबल संभावना बन रही थी और इस इलाके की 17 संसदीय सीटों में कांग्रेस पूरी तरह साफ हो जाती। वहीं ,रायलसीमा की चार व सीमांध्र की 21 सीटों पर जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर के सामने टिकना मुश्किल था। सियासी रूप से पूरी तरह विपरीत इन हालात में कांग्रेस ने पूरी तरह जांच-परखकर तेलंगाना का तीर साधा है।
आंध्र प्रदेश और लोकसभा के चुनाव एक साथ होने हैं। तेलंगाना प्रदेश में सरकार के साथ-साथ कांग्रेस 12 से 15 सीटें अपने पक्ष में मान रही है। आकलन है कि तेलंगाना में टीआरएस के साथ मिलकर वे क्लीन स्वीप करेंगे। वहीं, सीमांध्र और रायलसीमा में कांग्रेस अपना सफाया मान चुकी है। जमीन पर हार रही कांग्रेस के प्रबंधक अब सियासी प्रंबधन के सहारे इस हिस्से में भी सरकार के सपने देख रहे है। तेलुगू देसम सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू यहां उबर नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस मान रही है कि जगन यहां मुख्य ताकत के रूप में उभरेंगे। लोकसभा के साथ विधानसभा में भी जगन का वर्चस्व रहेगा। कांग्रेस को उम्मीद है कि बगैर उसके जगन की सरकार नहीं बनेगी। ऐसे में वह जगन को मुख्यमंत्री बनाकर वाईएसआर कांग्रेस के विलय की उम्मीद भी पाले है। इस आशावादी रणनीति के तहत कांग्रेस खुद को चुनाव बाद दो राज्यों में सरकार बनाते हुए देख रही है।
हालांकि, कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता इसे अतिआशावाद भी बता रहे हैं। उनका तर्क है कि 1971 में तेलंगाना में सबसे बड़ा आंदोलन चला तो भी यहां की 14 में आठ सीटें मिली थी। अब टीआरएस से समझौता करेंगे तो कांग्रेस के पुराने नेताओं के टिकट कटेंगे। इससे असंतोष होगा और 17 में 15 सीटें लाना मुश्किल है। फिर यहां भी सबसे बड़े नेता के रूप में टीआरएस अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव हैं। वहीं, सीमांध्र और रायलसीमा में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होगा। कांग्रेस चुनाव बाद जगन को साथ लाकर सरकार बनाने का सपना देख रही है। कुल मिलाकर कांग्रेस की उम्मीदें दोनों ऐसे लोगों से हैं, जो अभी कांग्रेस में हैं ही नहीं। साथ ही चाहे टीआरएस के राव हों या वाइएसएआर के जगन दोनों ही कांग्रेस को आंखें तरेरने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में यह तीर कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार साबित होने की आशंका भी उतनी ही ज्यादा है।
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