मेरठ [जासं]। खेड़ा में हुई महापंचायत का रिमोट लखनऊ बैठे पुलिस व प्रशासन के आला अफसरों के हाथ में था। उन्हीं के इशारे पर आला अफसरों ने आंदोलनकारियों का ज्ञापन नहीं लिया, जो बवाल की वजह बना।
केंद्रीय गुप्तचर विभाग ने भी खेड़ा महापंचायत को लेकर गृह विभाग को रिपोर्ट भेजी है। उस रिपोर्ट के मुताबिक महापंचायत को डीएम ने प्रतिबंधित कर दिया था। 2509 लोगों को निजी मुचलके में पांबद कर दिया। ठाकुर बहुल 29 गांव में एक-एक सेक्टर मजिस्ट्रेट की स्थायी रूप से तैनाती कर दी। पुलिस ने भी व्यवस्था कायम रखने के लिए मेरठ के अलावा आगरा व बरेली जोन से भारी संख्या में फोर्स बुलाने का दावा किया। शनिवार को डीआइजी, डीएम व एसएसपी ने खेड़ा में जाकर आयोजकों से बात करके महापंचायत को स्थगित होने का भी दावा किया। इन सभी के बावजूद न सिर्फ पंचायत हुई, बल्कि बवाल भी हुआ।
सूत्रों के मुताबिक रविवार को खेड़ा के जनता इंटर कालेज में प्रधानाचार्य के कक्ष में बैठे अफसर लखनऊ में लगातार किसी से बात कर रहे थे। बताया गया है कि उन्हीं के इशारे पर यह ज्ञापन नहीं लिया गया। सपा सरकार के एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस पूरे प्रकरण की जानकारी नेताजी को दे दी गई है। उनसे कहा है कि मुजफ्फरनगर हिंसा से पहले शहीद चौक पर हुई सभा के दौरान अफसरों ने ज्ञापन लिया तो उस मामले में कुछ अफसरों पर कार्रवाई भी हुई। इससे सहमे आला अफसरों ने खेड़ा महापंचायत में ज्ञापन नहीं लिया।
सपा नेताओं ने पुलिस प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। उनका तर्क है कि जब डीएम ने इस महापंचायत को पूर्णतया प्रतिबंधित कर दिया था तो फिर भीड़ कैसे जुटी? एक सवाल यह भी उठ रहा है कि महापंचायत के आयोजन को लेकर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में कहीं आपसी मनमुटाव तो नहीं था?
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