नई दिल्ली। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के वाले कानून की अधिसूचना राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के सात माह बाद भी जारी नहीं हो सकी लेकिन अब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इसके लिए सक्रिय हो गया है। तहलका के संपादक तरुण तेजपाल पर लगे एक सहकर्मी महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न का मामला सामने आने के बाद उसने मंगलवार को इस कानून के नियमों को अंतिम रूप देकर अधिसूचना जारी करने के लिए विधि मंत्रालय को भेज दिया है। इसमें यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायत पर दंड का भी प्रावधान है।
इसमें कहा गया है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है वह सही साबित हो जाता है तो उसे नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है। यदि शिकायत झूठी या दुर्भावनापूर्ण साबित होती है तो शिकायतकर्ता पर 500 रुपये जुर्माना या उसके वेतन से एक साल तक पांच फीसद की कटौती की जाएगी। ज्ञातव्य है कि यौन उत्पीड़न के मामले में दस से अधिक कर्मचारियों वाले सभी कार्यालयों में अनिवार्य रूप से एक आंतरिक शिकायत कमेटी का गठन करना अनिवार्य है। ऐसी शिकायत का निपटारा इस कमेटी द्वारा 90 दिनों के अंदर हो जाना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर नियोक्ता पर 50 हजार रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि ऐसे मामले की पुनरावृत्ति हुई और नियोक्ता कार्रवाई करने में नाकाम रहा तो उसके संस्थान का लाइसेंस या पंजीयन रद किया जा सकता है।
इस कानून की अधिसूचना अब तक जारी नहीं होने का कारण बताते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की अपर सचिव प्रीति सुदन ने कहा कि बगैर नियम बनाए इस काननू की अधिसूचना जारी करने से जनता के बीच उपहास उड़ता। बिना नियम के कोई कानून कैसे लागू किया जा सकता है?
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