लखनऊ [जासं]। न कलाकार अनाड़ी थे और न स्टेज पहली बार सजा था लेकिन बुधवार को जब स्थानीय कलाकार लखनऊ महोत्सव के मंच पर प्रस्तुति देने आए तो अपरिपक्वता, आत्मविश्वास और तैयारी की कमी उनमें साफ झलकी। हालांकि, लड़खड़ाते हुए शुरू हुई शाम अपने उरूज पर पहुंचते-पहुंचते लय पर आ गई।
सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत गौतमी गुप्ता की कथक प्रस्तुति से हुई। गौतमी भातखंडे की छात्र हैं। भातखंडे, लखनऊ विश्वविद्यालय सहित कई मंचों पर प्रस्तुति दे चुकी हैं लेकिन महोत्सव के मंच पर उनकी पहली प्रस्तुति फीकी नजर आई। हालांकि उनकी अंतिम प्रस्तुति 'मग रोको न सांवरिया, शीश लिए हूं गागरिया' पर खूब तालियां बजीं। संतकबीर नगर के मूल निवासी और इस समय मुंबई फिल्म जगत में सक्रिय प्रभाकर कश्यप ने शास्त्रीय संगीत पर आधारित फिल्मी गीतों की प्रस्तुति दी। उन्होंने 'शिरडी वाले साई बाबा आया है तेरे दर पे सवाली', 'चदरिया झीनी रे झीनी' और फिर लखनऊ में ही फिल्माई गई 'मेरे हुजूर में मन्ना डे के गाए गीत 'झनक झनक तोरी बाजे पायलिया' गाया। यहां प्रभाकर की आवाज और उनके संगतकर्ताओं के साज में तालमेल की दिखीं। तीसरी प्रस्तुति वसुंधरा प्रसाद की थी। हाल में आई फिल्म 'ख्वाजा मेरे ख्वाजा' के लीड रोल में दिखीं और अब अभिनय के साथ गायकी में अपना जलवा बिखेर रही वसुंधरा प्रसाद ने 'रातों को उठ उठ कर जिनके लिए रोते हैं, वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं', बाबा बुल्ले शाह के कलाम 'नी मैं कमली यार दी कमली' और 'दमादम मस्त कलंदर' गाकर श्रोताओं में जोश जरूर भरा पर यहां उनकी आवाज के बजाय अभिनय की झलक ज्यादा दिखी।
लखनऊ की देबोलीना पाल ने अपने खूबसूरत भावपूर्ण मणिपुरी नृत्य में राग रेवती में शिव शक्ति की प्रभावशाली प्रस्तुति दी। इसके बाद गंगावतरण का दृश्य मंच पर साकार हुआ। एक मायने में बुधवार को स्थानीय कलाकार भाग्यशाली रहे कि मुशायरा सुनने के लिए पंडाल पूरा भरा था और कलाकारों को दर्शकों की अच्छी तालियां मिलीं।
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