नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। चुनावी साल में सरकार ने गरीबों, वंचित तबकों की तरक्की का तानाबाना तो बुन लिया लेकिन वह उस पर अमल के मामले में फेल हो गई। या यूं कहें कि इतनी उलझी कि पर्याप्त धन होने के बावजूद वह सामाजिक सरोकार के विषयों पर उसे खर्च ही नहीं कर पाई। यहां तक कि जिस सामाजिक न्याय और पंचायती राज का वह सबसे ज्यादा ढोल पीटती है उस मोर्चे पर भी वह औंधे मुंह गिर पड़ी है।
खुद की इस नाकामी पर उसे अब ऐसे अप्रिय फैसले करने पड़ रहे हैं जो शायद न करने पड़ते। आलम यह है कि उसने विभिन्न मंत्रालयों के जरिये जरूरी योजनाओं पर खर्च का जो खाका तैयार किया था, अब उसे बदलना पड़ रहा है। वजह यह कि मंत्रालयों ने धन खर्च ही नहीं किया। नतीजा यह है कि सरकार को अब लगभग सभी मंत्रलयों के बजट में दस से बीस फीसद तक की कटौती करनी पड़ रही है।
सरकार सामाजिक न्याय की बात करती है। बीते सितंबर तक उसके बजट का कम से कम 50 फीसद धन खर्च होना चाहिए था। मगर सामाजिक न्याय मंत्रालय 18 फीसद तक भी नहीं पहुंच सका। पंचायती राज संस्थाएं कांग्रेस के एजेंडे में शुरू से ऊपर रही हैं। उसका मंत्रालय भी 19 फीसद बजट खर्च नहीं कर सका। इसी तरह जल संसाधन मंत्रालय भी 20 फीसद को पार नहीं कर सका।
लब्बोलुआब यह है कि पूरी सरकार छह महीने में अपने कुल योजना खर्च का 44 फीसद भी खर्च नहीं कर सकी। लिहाजा, वित्त मंत्रालय की तरफ से सभी मंत्रालयों के बजट में बेदर्दी से कटौती की जा रही है। बीते साल भी वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने मंत्रलयों के बजट में एक लाख करोड़ रुपये की कटौती की थी।
सबसे ज्यादा कटौती उन मंत्रालयों के बजट में होगी जिनके खर्च की रफ्तार बेहद धीमी रही है। वित्त मंत्रालय ने इस पर काम शुरू कर दिया है। राजकोषीय घाटे के दबाव से गुजर रहे वित्त मंत्री ने ऐसे सभी मंत्रालयों के कामकाज का ब्योरा मांग उनके बजट पर कैंची चलाने का काम शुरू कर दिया है।
Source- Business News in Hindi
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