Thursday, 3 October 2013

News in Hindi: Fodder Scam, some of accused died before decision


Lalu prasad yadav

जागरण ब्यूरो, पटना। चारा घोटाले में दोष साबित होने के बाद भी किसी अभियुक्त को फांसी की सजा नहीं दी जा सकती है। लेकिन, यह जानकर ताज्जुब होगा कि इस कांड के आधे दर्जन से अधिक नामजद असमय ही दिवंगत हो गए। इनमें ऐसे भी लोग थे जो उम्र भर बेदाग रहे। वे घोटाले के कलंक को बर्दाश्त नहीं कर पाए।
समाजवादी नेता चंद्रदेव प्रसाद वर्मा की छवि साफ-सुथरी मानी जाती थी। लंबे राजनीतिक कैरियर में उन पर कभी आरोप नहीं लगा। घोटाला होने की अवधि में पशुपालन मंत्री रहने के कारण उन्हें भी अभियुक्त बनाया गया। कहते हैं कि इस कांड में नाम आने के बाद उनकी सेहत बिगड़ती चली गई। अंतत: असमय ही उनका निधन हो गया। दूसरे पशुपालन मंत्री भोलाराम तूफानी गरीब परिवार के थे। रुपये-पैसे से भी अधिक लेना-देना नहीं था। अभियुक्त बनने के बाद वे विचलित रहने लगे। एक दिन उन्होंने पेट में चाकू घुसेड़ कर आत्महत्या की कोशिश की। उस समय वे बच गए, लेकिन अधिक दिनों तक जी नहीं पाए। तनाव के कारण उनकी बिगड़ती चली गई और एक दिन उनका निधन हो गया।

एक अभियुक्त थे-हरीश खंडेलवाल। उन्होंने मई 1997 में आत्महत्या कर ली। इस घोटाले के एक अभियुक्त एके टुड्ड दमा के मरीज थे। बेऊर जेल में बंद थे। अदालत में ही उन्हें दौरा पड़ा और अस्पताल के रास्ते में उनकी मौत हो गई। पीके जायसवाल की मौत न्यायिक हिरासत में रहने के दौरान हो गई। परिजनों का आरोप था कि उन्हें समय पर दवा नहीं दी गई। ओपी गुप्ता की मौत भी दवा के अभाव में हुई। वह भी जेल में बंद थे। इन दोनों की तरह तीसरे अभियुक्त विष्णु स्वरूप अग्रवाल के करीबियों ने भी दवा न मिलने के कारण मौत का आरोप लगाया। 

एक थे विनोद चिरानिया। चिरानिया ने कोलकाता में अपार्टमेंट से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। वे परिजनों के बीच खुद को निदरेष बता रहे थे। उन्होंने परिजनों से कहा था कि सीबीआई उन्हें यंत्रणा दे रही है। उनका अंतिम संस्कार पटना में किया गया। डा. चंद्रभूषण दूबे तनाव के कारण बीमार हुए। बाद में बीमारी के चलते उनकी भी असमय मौत हो गई। घोटाले के सूत्रधार कहे जाने वाले डा. श्याम बिहारी सिन्हा की मौत भी असमय ही हुई। हालांकि वे बहुत पहले से बीमार चल रहे थे।

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