Wednesday 25 September 2013

Cricket News in Hindi: If this player wouldnt have been there, Dhoni might not have scaled heights


MS Dhoni

(शिवम् अवस्थी), नई दिल्ली। कहने को तो क्रिकेट भी बाकी खेलों की तरह एक टीम गेम है, लेकिन इस खेल में कई बार व्यक्तिगत प्रदर्शन इतिहास बदलते आए हैं। कुछ ने अपने रिकॉर्ड रचे, कुछ ने टीम के रिकॉर्ड बेहतर किए तो कुछ इत्तेफाक और हकीकत की धार के बीच किसी और की सफलता का बड़ा कारण बन गए। ऐसा ही एक नाम है गौतम गंभीर का, काफी हद तक जिनके दम पर ही महेंद्र सिंह धौनी ने तीन ऐसी बड़ी सफलताएं हासिल की जिसने गंभीर को तो वह प्रसिद्धि नहीं दी लेकिन धौनी को जरूर महानतम कप्तान बना दिया। आखिर क्या है यह इत्तेफाक और क्या वाकई यह एक सच है, इसका फैसला आप खुद करें..
1. 2007 टी20 विश्व कप (टी20):
यह धौनी की जिंदगी में पहला ऐसा मौका आया था जब वह इतिहास रचते हुए अपने स्वर्णिम सफर की तरफ कदम बढ़ा सकते थे। पहले ही टी20 विश्व कप में भारत फाइनल में पहुंच चुका था, सामने थी घातक और इन फॉर्म पाकिस्तान की टीम, भारत पहले बल्लेबाजी करने उतरा था लेकिन 103 रन पर इन फॉर्म बल्लेबाज युवराज सिंह के साथ-साथ तीन शुरुआती अहम विकेट गंवाने के बाद वो गंभीर ही थे जो मोर्चे पर डटे रहे 54 गेंदों पर दो छक्कों और 8 चौकों की मदद से सर्वाधिक 75 रन बनाए और भारत किसी तरह 157 के स्कोर तक पहुंच सका। गौरतलब है कि भारत इस मैच में आखिरी ओवर की तीसरी गेंद पर जीता था और वह भी सिर्फ 5 रन से। अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर गंभीर की पारी ना होती तो पाकिस्तानी टीम ना जाने कब चैंपियन बनकर मैदान छोड़ चुकी होती। 

2. टेस्ट रैंकिंग में पहली बार नंबर वन (टेस्ट):
2007 में टी20 विश्व कप की जीत के बाद धौनी देश में एक चर्चित नाम बन चुके थे और एक शानदार युवा कप्तान के रूप में विश्व क्रिकेट में प्रसिद्ध हो चुके थे लेकिन 2009 में वो मौका आया जब धौनी यह साबित कर सकते थे कि वह लंबे प्रारूप में भी इतिहास रच सकते हैं। इस बार मौका था श्रीलंका के खिलाफ घरेलू टेस्ट सीरीज का। इस सीरीज में भारत अगर अच्छा खेलता तभी उसे पहली बार टेस्ट की नंबर वन रैंकिंग का रुतबा हासिल हो पाता। इस सीरीज में एक बार फिर गंभीर ही ट्रंप कार्ड साबित हुए। सीरीज के पहले टेस्ट में भारत दूसरी पारी में तलवार की धार पर था। लक्ष्य बड़ा था इसलिए जीत असंभव थी, खिलाड़ियों को बस किसी तरह पिच पर समय गुजारना था, ऐसे में घातक श्रीलंकाई गेंदबाजों का गंभीर (114) रन की पारी खेली व एक जरूरी सलामी साझेदारी को अंजाम दिया जिसके दम पर भारत ड्रॉ करा सका। फिर दूसरे टेस्ट मैच में भारत टेस्ट रैंकिंग के शीर्ष पायदान के बेहद करीब था, लेकिन तीसरे टेस्ट से पहले जीत बहुत जरूरी थी। एक बार फिर गंभीर का बल्ला चला और वह 167 रन की पारी खेलकर सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज बने। भारत ने यह मैच पारी और 144 रनों से जीता। तीसरे टेस्ट में गंभीर कुछ कारणों से नहीं खेल सके लेकिन तीसरे टेस्ट में जीत के साथ भारत टेस्ट में नंबर वन बना और इसका श्रेय भी कप्तान धौनी को गया और पहले व दूसरे टेस्ट में भारत की लाज बचाने वाले गंभीर का नाम फिर अंधेरे में गुम सा हो गया। 

3. विश्व कप 2011 (वनडे):
28 साल बाद वो मौका आया जब भारत अपने अधूरे सपने को पूरा कर सकता था और सचिन को यादगार तोहफा दे सकता था। यहां फाइनल मैच में भारत के सामने लंका ने 274 रनों का लक्ष्य रखा लेकिन जवाब में भारतीय पारी शुरुआत में ही लड़खड़ा गई और सहवाग (0) और सचिन (18) जल्दी पवेलियन लौट गए। फिर वो गंभीर ही थे जिन्होंने बिना अपने शतक की चिंता करते हुए 122 गेंदों पर 97 रनों की पारी खेली और भारत को मैच में वापस लाकर खड़ा कर दिया। उनकी इसी पारी के दम पर धौनी और युवराज को 48.2 ओवर में ही मैच समाप्त करने की मजबूत नींव मिली और भारत ने चैंपियन का रुतबा हासिल किया। यही वो तीन सफलताएं थीं जिसने धौनी को एक खिलाड़ी से महान कप्तान और एक महान कप्तान से महानतम कप्तान का दर्जा दिया। यह अलग बात है कि आज गंभीर फॉर्म से जूझ रहे हैं और टीम से बाहर हैं लेकिन हमेशा टीम के लिए खेलने वाले भारतीय क्रिकेट फैंस को इस खिलाड़ी का हमेशा ऐहसानमंद रहना होगा। 

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