Wednesday 25 September 2013

News in Hindi: Cabinet clears ordinance to shield convicted lawmakers


Cabinet

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दागियों को हर हाल में सदन की शोभा बनाए रखने में अड़ी सरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के लिए अध्यादेश लाई है। कैबिनेट ने मंगलवार को दोषी नेताओं को अयोग्यता से बचाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी। कैबिनेट की हरी झंडी के बाद अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया गया है।

कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार पहले विधेयक लाई थी, लेकिन वह लोकसभा में अटक गया। माना जा रहा है कि सरकार के पास शीतकालीन सत्र तक इंतजार करने का समय नहीं है क्योंकि कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद का मामला फंस रहा है। मसूद को दिल्ली की एक अदालत भ्रष्टाचार के जुर्म में दोषी ठहरा चुकी है। एक अक्टूबर को उन्हें सजा सुनाई जानी है। चारा घोटाले में आरोपी लालू के मामले में भी 30 सितंबर को झारखंड की सीबीआइ अदालत का फैसला आना है। अगर फैसला उनके खिलाफ गया तो भी अध्यादेश से उनकी सदस्यता बची रहेगी। 

इन परिस्थितियों में आमतौर पर गुरुवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक दो दिन पहले ही बुलाई गई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में भाग लेने के लिए बुधवार को अमेरिका रवाना होने वाले हैं। इसलिए आनन-फानन में कैबिनेट की बैठक बुलाकर अध्यादेश को मंजूरी दे दी गई। राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद कानूनन कोई अध्यादेश छह महीने तक प्रभावी रह सकता है। लेकिन, इस बीच अगर संसद सत्र पड़ता है तो अध्यादेश को विधेयक के रूप में पेश कर सदन की मंजूरी लेनी पड़ती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने गत 10 जुलाई को दागी सांसदों-विधायकों को अयोग्यता से बचाने वाली जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अदालत से दोषी करार होते ही सांसद-विधायक की सदस्यता खत्म हो जाएगी। संसद को अयोग्यता लंबित रखने का कानून बनाने का अधिकार नहीं है। इस फैसले के खिलाफ दाखिल सरकार की पुनर्विचार याचिका भी शीर्ष अदालत खारिज कर चुकी है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू है जिसके मुताबिक दो वर्ष या इससे ज्यादा की सजा होने पर सांसदी-विधायकी चली जाएगी। 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया था। सभी दलों ने एक सुर में फैसला पलटने के लिए विधेयक लाने पर हामी भरी थी। सरकार मानसून सत्र में विधेयक लाई थी जिसमें जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 को बहाल करने की बात कही गई है। इसके मुताबिक अदालत से दोषी ठहराया गया सदस्य अगर 90 दिन के अंदर सजा के खिलाफ ऊंची अदालत में अपील कर देता है तो उसकी सदस्यता बनी रहेगी। लेकिन, पिछले कानून से नए विधेयक और अध्यादेश में एक अंतर है। विधेयक और अध्यादेश में कहा गया है कि अदालत से दोषी ठहराया गया सदस्य अपील लंबित रहने तक सदस्यता से अयोग्य नहीं होगा, लेकिन वह न तो सदन में मतदान कर पाएगा और न ही उसे वेतन-भत्तो मिलेंगे।

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