न्यूयॉर्क। भारत के महान शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ने कहा कि उनका सपना है कि यह खेल देश के प्रत्येक स्कूल में खेला जाए। हाल में नार्वे के मैग्नस कार्लसन ने उनसे विश्व चैंपियन का खिताब छीन लिया था।
आनंद ने 'रिइमेजिनिंग इंडिया : अनलॉकिंग द पोटेंशियल ऑफ एशियाज नेक्स्ट सुपरपावर' नाम की किताब के लिए एक निबंध लिखा है जिसे वैश्विक कंस्लटेंट फर्म मैकिंसे ने संपादित किया है। शतरंज में रूस के दबदबे की जानकारी देते हुए आनंद ने कहा कि रूस के लोग इस बात के लिए मशहूर हैं कि वे दुल्हन के शादी के साजो सामान में 'चेसबोर्ड' देते हैं ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे खेल के नियम जान जाएं। उन्होंने कहा, 'सोवियत के लोगों के लिए शतरंज उनके डीएनए में था। समय और प्रयास से हम भारतीय भी बच्चे को बचपन से शतरंज के नियमों से रूबरू करवा सकते हैं ताकि वे खेल की बारिकियों को समझ सके।' आनंद को पिछले सप्ताह कार्लसन ने मात दी थी, जिन्होंने चेन्नई में 10 बाजियों के बाद विश्व शतरंज चैंपियन खिताब हासिल किया था। कार्लसन ने तीन गेम में जीत दर्ज की थी जबकि बाकी सात ड्रॉ खेली थी जिससे उन्होंने 6.5-3.5 अंक से जीत हासिल की।
आनंद ने निबंध में लिखा कि वह अपने खेल में अपनी 'भारतीय पहचान' शामिल करते हैं। आनंद ने 1980 के दशक में अंत में मास्को के अपने पहले दौरे को याद करते हुए लिखा कि वह इस बात से भयभीत थे कि उन्हें लगता था कि उन्हें 'हर कैब ड्राइवर शतरंज में मात' दे सकता था। ऐसे ही माहौल में भारत ने रूसी शतरंज स्कूल आयोजित किया था। मुझे कॉफी हाउस खिलाड़ी के नाम से पुकारा जाता था। पिछले कुछ वर्षो में रूस का दबदबा कमजोर हुआ है और अब चीन, नॉर्वे, अर्मेनिया और इजराइल से भी अच्छे खिलाड़ी निकलने शुरू हो गए हैं।'
आनंद के अनुसार, 'जब मैंने शुरू किया था, भारतीयों की शतरंज में इतनी दिलचस्पी नहीं थी। कोई भी इसके बारे में बात नहीं करता था। अब भारत में हर दिन नई शतरंज अकादमियां खुलती हैं। इस खेल का अब काफी विस्तार हो रहा है।'
Source- Sports News in Hindi
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