Monday, 25 November 2013

Talwars Convicted of Aarushi's Murder

Aarushi murder case

जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। डॉ तलवार दंपति अपनी जिस इकलौती बेटी आरुषि के लिए इंसाफ मांग रहे थे उसकी हत्या के दोषी वे खुद ही पाए गए। उन्हें नेपाली मूल के अपने नौकर हेमराज की हत्या का भी दोषी पाया गया। देश-दुनिया का ध्यान खींचने और हाल के इतिहास के सबसे चर्चित एवं कौतूहल पैदा करने वाले इस मामले में सोमवार को गाजियाबाद की विशेष सीबीआइ अदालत उसी नतीजे पर पहुंची जो साढ़े पांच साल पहले 14 साल की आरुषि की हत्या के बाद से ही कई लोगों के मन में उमड़-घुमड़ रहा था। विशेष सीबीआइ जज श्याम लाल ने दांतों के डॉक्टर राजेश तलवार और नूपुर तलवार को आइपीसी की धारा 302/34 और 201(साक्ष्य छिपाने) का दोषी करार दिया।

डॉ राजेश को आइपीसी की धारा 203(झूठी एफआइआर दर्ज कराकर पुलिस को गुमराह करने) का भी दोषी माना गया। 204 पेज के अपने फैसले में जज ने राजेश-नूपुर के खिलाफ कठोर टिप्पणियां करते हुए यहां तक कहा कि तलवार दंपति ने अपनी बेटी की हत्या कर न केवल कानून का उल्लंघन किया, बल्कि धर्म से भी खिलवाड़ किया। राजेश-नूपुर की सजा का एलान मंगलवार को किया जाएगा। फैसले के बाद डॉ दंपति को हिरासत में लेकर गाजियाबाद की डासना जेल भेज दिया गया।

दिल्ली से सटे नोएडा के जलवायु विहार के एल-32 फ्लैट में 15 मई, 2008 को देर रात दिल्ली पब्लिक स्कूल की नौवीं की छात्रा आरुषि की हत्या उसके जन्मदिन (24 मई) से मात्र एक हफ्ते पहले कर दी गई थी। उस रात घर में सिर्फ वह, उसके माता-पिता और नौकर हेमराज ही थे। उसकी हत्या के अगले ही दिन हेमराज का शव भी घर की छत पर पाया गया, जबकि डॉ. दंपति उस पर ही हत्या कर भाग जाने का संदेह जता रहे थे। नोएडा पुलिस ने अपनी प्रारंभिक जांच में तलवार दंपति पर ही हत्या का शक जताया। बाद में सुर्खियों में छा गए इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई।

जांच एजेंसी ने भी काफी छानबीन की, लेकिन ठोस सुबूतों के अभाव में उसने 29 दिसंबर, 2010 को क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। इस पर डॉ तलवार ने मामले की जांच नए सिरे से कराने की मांग की। इस दौरान अदालत परिसर में उन पर हमला भी हुआ। विशेष सीबीआइ अदालत ने सीबीआइ को क्लोजर रिपोर्ट को ही आरोपपत्र बनाते हुए फिर से मामले की जांच करने का अप्रत्याशित आदेश दिया। सीबीआइ इस नतीजे पर पहुंची कि डॉ राजेश अपनी बेटी को 45 वर्षीय हेमराज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखकर आपा खो बैठे। उन्होंने गोल्फ स्टिक से उस पर वार किया जो आरुषि को लगा और वह मर गई। इसके बाद उन्होंने पत्नी के साथ मिल कर हेमराज को भी ठिकाने लगाया और उसकी लाश छत पर छिपा दी। 

करीब 18 महीने तक चली सुनवाई के बाद इस मामले का फैसला जानने को लेकर सुबह से ही सीबीआइ अदालत के बाहर मीडियाकर्मियों, अधिवक्ताओं और आम लोगों का जमावड़ा था। तलवार दंपति को सुबह दस बजे ही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच गाजियाबाद लाया गया और एक होटल में ठहराया गया। दोनों को मीडिया से दूर रखा गया। दोपहर बाद उन्हें पीछे के रास्ते से अदालत ले जाया गया। अदालत परिसर में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे और मीडियाकर्मियों के परिसर में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी। 

फैसला सुनते ही रो पड़े डॉ दंपति
दोपहर तीन बजे जैसे ही फैसला आया, बेंच पर गुमसुम बैठे तलवार दंपति रोने लगे। शायद उन्हें ऐसे फैसले का आभास था, क्योंकि कुछ ही समय बाद उनकी ओर से मीडिया को एक लिखित बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया था कि उन्होंने जो गुनाह किया ही नहीं उसके लिए अदालत ने दोषी ठहरा दिया। वे फैसले से पूरी तरह असंतुष्ट हैं। बेटी को न्याय दिलाने की मांग जारी रखते हुए वे फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे। उनके रिश्तेदारों और वकीलों ने भी फैसले से असहमति जताई। राजेश तलवार की भाई की पत्नी ने कहा कि सीबीआइ की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए सच्चाई को झूठ की परतों में छिपा दिया गया।

हो सकती है उम्र कैद या फांसी
डॉ दंपति को कम से कम आजीवन कारावास और अधिकतम फांसी की सजा सुनाई जा सकती है। विशेष अदालत ने दोनों को आइपीसी की धारा 302/34 (एक मकसद से हत्या करना)/201(साक्ष्य छुपाना) के तहत दोषी करार दिया है। वरिष्ठ कानूनविदों के मुताबिक, इन दोनों धाराओं में कम से कम आजीवन कारावास की सजा मिलती है। यदि मामले को अदालत विरलतम श्रेणी में मानती है तो दोषियों को फांसी की सजा मिलेगी। इसके अलावा फर्जी एफआइआर मामले में डॉ राजेश को दो साल तक की सजा मिल सकती है। इसके अलावा जुर्माना लगाने में अदालत अपने विवेक का इस्तेमाल करती है।


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