Wednesday 30 October 2013

Treasure Can Be Found in Ettah

Treasure

एटा, [अनिल गुप्ता]। इट्स हैपन ओनली इन इंडिया। उन्नाव के डौंड़िया खेड़ा में भले ही सोना न मिला हो, लेकिन जनपद के अतिरंजी खेड़ा और सराय अगहत में पुरातात्विक संपदा, सभ्यता और संस्कृति का भंडार धरा के गर्भ में छिपा हुआ है। यहां खुदाई में पुरातात्विक महत्व की ढेरों सामग्री निकल चुकी है, लेकिन बड़ा भंडार अभी बाकी है। यहां विशाल दुर्ग थे। यहां तक कि भगवान बुद्ध भी अतिरंजी खेड़ा आए थे। जिला प्रशासन यहां दोबारा खुदाई के लिए संस्तुति कर चुका है, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) खुदाई तो दूर, सर्वेक्षण को भी अब तैयार नहीं है।
एटा से 16 किमी दूर उत्तर में स्थित अतिरंजी खेड़ा का पुराना नाम वेरंजा है। यह पांचाल नरेश बेन चक्रवर्ती की रियासत का अंग था। उनकी बौद्ध धर्म में आस्था थी, ऐसे में यह धर्म यहां समृद्ध हुआ। उनके आगमन पर यहां भगवान बुद्ध भी आए। उनका यहां दुर्ग था। मुगल सम्राट आए, तो यहां भी हमले होने लगे। आखिर 16वीं शताब्दी में अकबर के समय में यह दुर्ग ढेर होकर टीला बन गया। 3360 फुट लंबा और 1500 फुट चौड़ा टीला आज भी यहां है। मुस्लिमों का लंबा शासनकाल गुजरने के बाद सन् 1866 में विदेशी इतिहासकार जनरल कनिंघम ने यहां का दौरा किया। उस वक्त उन्होंने दावा किया कि यहां बौद्ध कालीन अवशेष हैं। वर्ष 1951 में पुरातत्व विभाग के निदेशक डॉ. केबी लाल ने यहां उत्खनन कराया। आखिरी बार 1968 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने उत्खनन कराया। इसमें लोहा पिघलाने की भट्ठियां, तांबे के बर्तन और मुद्रा, भाला, गेरुआ रंग के बर्तन मिले। यही नहीं कुषाण, गुप्त कालीन मूर्तियां, तांबे के सिक्के, पत्थर के टैग, देवी -देवताओं के चित्र, फूल-पत्तियां, भाले मिल चुके हैं।

इसके अलावा भोजपत्र प्राप्त हुए थे। प्रशासन ने इन अवशेषों के महत्व को समझते हुए लखनऊ, कोलकाता, दिल्ली, मथुरा आदि संग्रहालयों में रखवा दिया। कुल चार बार में उत्खनन के दौरान कई टैग चित्र, सागोन की लकड़ी पर चित्रकारी आदि चीजें भी बरामद हुई। 1968 के बाद से न कोई सर्वे हुआ न उत्खनन। वैसे सबसे पहले चीनी यात्री हृवेन सांग ने इस जगह की खोज की थी।
रातों रात 40 फीट की सुरंग

अतिरंजी खेड़ा के उचित रखरखाव के लिए पुरातत्व विभाग को फुर्सत नहीं मिली। इसका लाभ उठाते हुए कुछ लोगों ने खजाने की खोज में वर्ष 2005 में चालीस फीट गहरी सुरंग खोद डाली। इस खुदाई में जो भी निकला, उसे खुदाई करने वाले ले गए। यह सुरंग खोदने के बाद इसके गेट पर दरवाजा तक लगा दिया। स्थानीय लोगों की मानें, तो एक रात कुछ साधुओं को यहां अनुष्ठान करते देखा गया। इसके बावजूद प्रशासन ने कभी ध्यान नहीं दिया।

बाहर निकल आए हैं अवशेष

अतिरंजी खेड़ा के अवशेष तो स्वयं ही बाहर निकल रहे हैं। अगर थोड़ी भी खुदाई कराई जाए, तो प्राचीन सभ्यता से जुड़े तमाम अवशेष मिल सकते हैं।

सराय अगहत में है भंडार

सराय अगहत में तीन पठानों ने 16वीं शताब्दी में सराय का निर्माण कराया। यहां अब बस टीला है, जिसमें प्राचीन, मध्यकालीन तथा बौद्ध कालीन संपदा का भंडार है। बौद्ध तीर्थ स्थल संकिसा पास होने से यह आकलन किया गया है कि उत्खनन से इतिहास के कई गूढ़ रहस्य खुल सकते हैं। पुरातत्व विभाग ने यहां के टीले को अपनी सूची में तो शामिल किया, मगर सर्वे नहीं कराया।
प्रशासन ने की थी संस्तुति

अतिरंजी खेड़ा और सराय अगहत में निकलने वाली प्राचीन संपत्ति को देखते हुए वर्ष 2008 में तत्कालीन डीएम ने एएसआइ से यहां दोबारा खुदाई की संस्तुति की थी, लेकिन इस पर कुछ नहीं हुआ।
एएसआई ध्यान दे

अतिरंजीअखेड़ा पर हुए कई शोधों में यह स्थल बौद्ध तीर्थ होने के अलावा महाभारत कालीन स्मृतियां समेटे हुए होने की बात सामने आई है। इसके बावजूद भी विडंबना ही है कि एएसआई ने अब तक गौर नहीं किया है। अन्यथा यहां की प्राचीन स्थिति और स्पष्ट हो जाती। -डा. प्रेमीराम मिश्रा, इतिहासकार

Source- News in Hindi

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