Thursday 22 August 2013

Memory of Bismillah Khan

Ustad Bismillah Khan
वाराणसी। यह भी अजीब इबेफाक है कि बिस्मिल्लाह खां साहब की पैदाइश की तारीख भी 21 है और उन्होंने आंखें भी मूंदीं इसी तारीख को। महीने क्रमश: मार्च और अगस्त के थे। बिस्मिल्लाह खां साहब को काशी और अपने देश से इतना लगाव था कि एक बार उन्होंने अमेरिका में बसने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था।

खां साहब के बेहद अजीज मुतुर्जा अक्बास शम्सी बताते हैं सन 1982 की बात। वाकया उस वक्त का है जब उस्ताद जी अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में थे। कुछ लोगों ने उस्ताद से मिलकर उनसे किसी भी कीमत पर अमेरिका में ही बसने का आग्रह किया। खां साहब ने कहा, 'हमारी गंगा और हमारे बालाजी का मंदिर यहां मंगवा दो हम यहीं बसे जाते हैं।' डुमरांव, बिहार में जन्म लेने वाले बिस्मिलाह खां चार वर्ष की उम्र में अभिभावकों के साथ काशी आए तो यहीं के होकर रह गए। 

जहां शहनाई का नाम आए, वहां उस्ताद जी के जिक्र बिना बात पूरी होती नहीं। शोहरत और कामयाबी के कई 'हिमाला' सर करने के बाद भी उनकी जिंदगी हड़हा वाले मकान की छत पर बनी छोटी सी कोठरी में ही गुजरी। शहनाई के बाद इस कमरे में पड़ी एक साधारण सी खटिया और कुछ गिलास और रकाबियां ही आखिरी सफर तक उनकी हमसफर रहीं। बेटों में हाजी महताब हुसैन, जामिन हुसैन, काजिम हुसैन, नाजिम हुसैन के अलावा बेटियों में जरीना बेगम, अजरा बेगम व कनीजा बेगम भी अभी मौजूद हैं। भतीजे अली अक्बास व पौत्र आफाक हैदर शहनाई की उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। 

Original Found Here.. http://www.jagran.com/entertainment/bollywood-memory-of-bismillah-khan-10663454.html

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